Aaj Kon Sa Navratri Hai – April 2024

Aaj Kon Sa Navratri Hai 2024 (आज कौन सा नवरात्रि है ) – दोस्तो, चैत्र नवरात्र 9th April 2024 से प्रारंम्भ हो रहे हैं। आगे सभी 9 नवरात्र का कैलेंडर दिया जा रहा है।

साथ ही इस लेख में हम जानेंगे कि किस नवरात्र को किस देवी की पूजा होती है।

Navratri Calandar – Sharad Navratri (April 2024)

Sr. No.Navratri (नवरात्र)Date (दिनाँक)Goddess (देवी)
1.पहला नवरात्र09.04.2024शैलपुत्री
2.दूसरा नवरात्र09.04.2024ब्रह्मचारिणी
3.तीसरा नवरात्र09.04.2024चंद्रघंटा
4.चौथा नवरात्र09.04.2024कूष्माण्डा
5.पाँचवाँ नवरात्र09.04.2024स्कंदमाता
6.छठा नवरात्र09.04.2024कात्यायनी
7.सातवाँ नवरात्र09.04.2024कालरात्रि
8.आठवाँ नवरात्र09.04.2024महागौरी
9.नौवाँ नवरात्र09.04.2024सिद्धिदात्री

Memory Trick : सभी देवियों का क्रम याद रखने के लिए इस वाक्य को याद रखें :

शैल पर बैठे ब्रह्मा ने चंद्र को कुश और कन्द खिलाकर कातिल काल से बचाया। फिर महान सिद्धि दी।

Explanation: जो भी Words Bold किये हैं वे देवी के नाम हैं। जैसे शैल (शैलपुत्री), ब्रह्मा (ब्रह्मचारिणी), चंद्र (चंद्रघंटा) और इसी तरह से अंत तक आप देख सकते हैं।

कुश और कातिल एक्सएक्ट मैच नहीं है लेकिन आपको क्लू दे रहे हैं।

कुश वैसे दूब को बोलते हैं और यहाँ कुष्मांडा देवी के लिए हैं। ऐसे कातिल कात्यायनी के लिए है।

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Aaj Kon Sa Navratri Hai – Chaitra नवरात्री

आज आप महागौरी माँ का मन्त्र जाप 3, 5, 7 या 108 बार करें :

“या देवी सर्वभूतेषु, सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Sidhidatri Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

तथा दुर्गा चालीसा पढ़ें – Durga Chalisa – Durga Chalisa Pdf .

Aaj Kon Sa Navratri Hai
Aaj Kon Sa Navratri Hai – 4th (Kushmanda Mata)

Navratri kya hai (Navratri kya hota hai) : नवरात्रि क्या है

नवरात्रि हिन्दुओं का धार्मिक पर्व है। इसे नौ रातों तक माँ दुर्गा के सम्मान में मनाया जाता है।

नवरात्रि साल में दो बार आते हैं। एक बार राम के जन्म से पहले चैत्र महीने में और दूसरा दशहरे से पहले अक्टूबर में। (Aaj Kon Sa Navratri Hai)

दुर्गा के नौ रूप : नवरात्रि का हर दिन देवी के नौ में से किसी एक रूप को समर्पित होता है। इनकी पूरी लिस्ट इस प्रकार से है –

  1. शैलपुत्री – पहला नवरात्रि (09 अप्रैल – 2024)
  2. ब्रह्मचारिणी – दूसरा नवरात्रि (10 अप्रैल – 2024)
  3. चंद्रघंटा – तीसरा Navratri (11 अप्रैल – 2024)
  4. कूष्माण्डा – चौथा Navratri (12 अप्रैल – 2024)
  5. स्कंदमाता – पांचवा नवरात्रि (13 अप्रैल – 2024)
  6. कात्यायनी- छठा नवरात्रि (14 अप्रैल – 2024)
  7. कालरात्रि – सातवाँ Navratri (15 अप्रैल – 2024)
  8. महागौरी – आठवाँ Navratri (16 अप्रैल – 2024)
  9. सिद्धिदात्री – नौवाँ नवरात्रि (17 अप्रैल – 2024)

आइये अब दुर्गा के सभी रूपों के बारे में पढ़ते हैं :

1. शैलपुत्री (Shailputri – First Navratri 9th April 2024 )

Aaj Kon Sa Navratri Hai
Shailputri


दुर्गा के पहले रूप का नाम शैलपुत्री है। नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा की जाती है।

“शैल” का मतलब है पर्वत , और “पुत्री” का मतलब है बेटी , इसलिए शैलपुत्री का मतलब होता है पर्वत की बेटी। इसलिए इन्हे पार्वती भी कहा जाता है। साथ ही इनके अन्य नाम सती और भवानी भी हैं।

रूप वर्णन : शैलपुत्री माता बृषभ यानि बैल की सवारी करती हैं। इनके एक हाथ में त्रिशूल है तथा दूसरे में कमल का फूल है। यह माता पवित्रता, भक्ति और साहस का प्रतीक हैं।

नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा करने से साधक के सारे पापों का नाश होता है। तथा उसे मनचाहा फल मिलता है। (Aaj Kon Sa Navratri Hai)

ऊर्जा चक्र : शैलपुत्री माता मूलधर चक्र ( Muladhara Chakra)की स्वामिनी हैं। यह इंसान के शरीर का पहला चक्र होता है। यह चक्र मेरु रज्जु (Spine) के अंत में होता है।

यह धरती का प्रतीक है तथा इसका रंग लाल है। शैलपुत्री की साधना करने से व्यक्ति Muladhara Chakra को जगा सकता है। तथा अपने जीवन में stability, ताकत, और समन्वय ला सकता है।

पूजा का विधान : साधक को शैलपुत्री माँ को लाल रंग के फूल, coconut, और गुड़ चढ़ाना चाहिए। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। उन्हें दूध और फल खाने चाहियें।

इसके साथ ही दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। जो आपको यहाँ पर मिल जाएगी :
Durga Chalisa – Durga Chalisa Pdf .

साथ ही शैलपुत्री मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए। इससे आपको मन की मुराद मिल जाएगी।

शैलपुत्री मन्त्र :

“या देवी सर्वभूतेषु, शैलपुत्री रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Shailputri Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

नवरात्रि व्रत कथा (Navratri vrat katha ) – Aaj Kon Sa Navratri Hai

सती की रोचक कथा : वास्तव में शैलपुत्री पिछले जन्म में शिवजी की पत्नी सती थीं। उनके पिता का नाम दक्ष था। एक बार दक्ष एक यज्ञ का आयोजन करते हैं। जिसमें समस्त देवी – देवताओं को बुलाते हैं। लेकिन वे शिव और सती को नहीं बुलाते।

सती, शिव से कहती हैं कि उन्हें भी पिता के यज्ञ में चलना चाहिए। लेकिन शिव कहते हैं कि बिन बुलाये कहीं नहीं जाना चाहिए। लेकिन सती जिद करके चली जाती हैं। (Aaj Kon Sa Navratri Hai)

लेकिन जब वे वहाँ पहुँचती हैं तो कोई उनका आदर -सत्कार नहीं करता। साथ ही सब शिव की निंदा करते हैं। सती इससे क्रोधित और क्षुब्ध हो जाती हैं। और वे हवन कुण्ड में कूदकर अपने प्राण त्याग देती हैं।

यह देखकर शिव क्रोधित हो जाते हैं और तांडव करने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन ब्रह्मा और विष्णु उनसे विनती करते हैं कि ऐसा न करें। इसके पश्चात शिव सती के शव को लेकर ब्रह्माण्ड में बेसुध से घूमते रहते हैं।

ब्रह्मा के कहने पर विष्णु अपने सुदर्शन से सती के मृत शरीर को काट देते हैं। इससे सती के शरीर के टुकड़े सारी धरती पर बिखर जाते हैं। और वहाँ आज तरह -तरह के शक्तिपीठ बने हुए हैं।

जैसे जहाँ सिर गिरता है उसे चामुण्ड़ा कहते हैं। जहाँ आँखे गिरती हैं उसे नयना देवी कहते हैं। आदि।

इसके बाद सती का फिर से दक्ष के घर जन्म होता है। और वे फिर से शिव से शादी करती हैं।

दोस्तो, उम्मीद है आपको पता चल गया होगा कि – Aaj Kon Sa Navratri Hai .

2. ब्रह्मचारिणी (Brahmcharini – Second Navratri 10th April 2024)

ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा का दूसरा रूप है। इन्हे नवरात्रि के दूसरे दिन पूजा जाता है। “ब्रह्मचारिणी” एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है – ब्रह्मा के मार्ग का अनुसरण करने वाले या ब्रह्मचर्य का अभ्यास करने वाला व्यक्ति ।

देवी का यह रूप तपस्याचारिणी या अपर्णा के रूप में भी जाना जाता है।

Aaj Kon Sa Navratri Hai
Brahmcharini Mata

रूप वर्णन : ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र पहनती हुई दिखाई देती हैं। उनके दाहिने हाथ में एक रुद्राक्ष माला और बाएं हाथ में कमंडल (पानी का बरतन) होता है। ये प्रेम, वफादारी और ज्ञान का प्रतीक मानी जाती हैं। Aaj Kon Sa Navratri Hai .

ऊर्जा चक्र : मानव शरीर में, ब्रह्मचारिणी स्वाधिष्ठान चक्र से जुड़ी हुई है। यह मानव शरीर में दूसरा चक्र या ऊर्जा केंद्र होता है। स्वाधिष्ठान चक्र निचले पेट के पास स्थित होता है।

यह जल तत्व का प्रतीक हैं। तथा नारंगी रंग से जुड़ा होता है। ब्रह्मचारिणी की पूजा करके, आप स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय कर सकते हैं और अपनी रचनात्मकता, यौनता और भावनात्मक संतुलन को बढ़ा सकते हैं।

ब्रह्मचारिणी से जुड़ी कथा के अनुसार, वह हिमालय की बेटी के रूप में जन्मी थी। उन्होंने बाद में भगवान शिव से विवाह किया। भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या की थी।

पूजा का विधान : नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान, भक्त ब्रह्मचारिणी को विभिन्न चढ़ावा चढ़ाते हैं, जैसे दूध, शहद और फल। कई लोग नवरात्रि के दूसरे दिन उपवास रखते हैं और केवल फल, दूध और अन्य हल्के भोजन करते हैं।

ब्रह्मचारिणी माता की नवरात्रि के दूसरे दिन पूजा करने से आध्यात्मिक विकास, ज्ञान, बुद्धि और स्वयं पर नियंत्रण के आशीर्वाद प्राप्त किए जा सकते हैं।

इसके साथ ही दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। जिसका Link ऊपर दिया गया था।

साथ ही ब्रह्मचारिणी माता मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए। इससे आपको मन की मुराद मिल जाएगी।

ब्रह्मचारिणी माता मन्त्र :

“या देवी सर्वभूतेषु, ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, brahamcharinin Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

3. चंद्रघंटा (Chandraghanta – Third Navratri 11th April 2024)

चंद्रघंटा देवी दुर्गा की तीसरी अवतार हैं। वे नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाती हैं। “चंद्र” का अर्थ चांद होता हैं, और “घंटा” का अर्थ घंटी, इसलिए चंद्रघंटा को ऐसा इसलिए कहा जाता है क्युँकि वे अपने माथे पर चांद जैसी घंटी पहनती हैं। इन्हे चंडिका, रणचंडी या चामुण्डा के नाम से भी जाना जाता है।

Chandraghanta - Third Navratri

रूप वर्णन : चंद्रघंटा बाघ पर सवार होती हैं। ये वह दस हाथों वाली हैं, जिनमें तलवार, धनुष, तीर और त्रिशूल जैसे अस्त्र -शस्त्र होते हैं। यह देवी साहस, शक्ति और कृपा की प्रतिनिधि होती है।

ऊर्जा चक्र : चंद्रघंटा मणिपूर चक्र से जुड़ी होती हैं। यह शरीर का तीसरा चक्र होता हैं और नाभि के पास स्थित होता हैं। मणिपूर चक्र अग्नि तत्व से जुड़ा है। और पीले रंग का होता है। ( Durga ka Aaj Kon Sa Navratri Hai) .

चंद्रघंटा माता की पूजा करके व्यक्ति अपने मणिपूर चक्र को सक्रिय कर सकता है। तथा स्वयं के आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति और साहस को बढ़ा सकता है। इससे उसे हर कार्य में सफलता मिलती है।

चंद्रघंटा देवी के सम्बन्ध में कथा है कि वह भगवान शिव से शादी करना चाहती थीं । शिव के सहमत होने के बाद वे देवी पार्वती के रूप में प्रकट हुई।

उनके माथे पर आधा चंद्रमा होता है, जो एक घंटी की तरह लगता है। इस घंटी की ध्वनि सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करती है। और देवी अपने भक्तों को संरक्षण प्रदान करती है।

पूजा का विधान : नवरात्रि के नौ दिनों में, भक्त चंद्रघंटा को विभिन्न चीजें चढ़ाते हैं, जैसे कि खीर, मिठाई और लाल फूल आदि। बहुत से लोग नवरात्रि के तीसरे दिन उपवास रखते हैं और माँ की पूजा करते हैं ।

चंद्रघंटा माता की नवरात्रि के तीसरे दिन पूजा की जाती है। इससे साधक को देवी का संरक्षण, साहस और शत्रुओं पर विजय का आशीर्वाद मिलता है।

इसके अलावा दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। जिसका Link ऊपर दिया गया था।

इस दिन चंद्रघंटा माता मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए। इससे आपको मन की मुराद मिल जाएगी।

चंद्रघंटा माता मन्त्र :

“या देवी सर्वभूतेषु, चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Chandraghanta Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

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4. कूष्माण्डा (Kushmanda – Fourth Navratri 12th April 2024) – Aaj Kon Sa Navratri Hai

कुष्माण्डा, दुर्गा माँ की चौथी रूप हैं। इनकी नवरात्रि के चौथे दिन पूजा की जाती है। “कुष्माण्डा” एक संस्कृत शब्द है। “कुष्म” का मतलब है – धीमी हंसी और “माण्ड” का अर्थ ब्रह्मांड है।

इसलिए इनका अर्थ हुआ – जिसने धीमी हंसी से ब्र्रह्मांड को बनाया हो। इन्हे आदि शक्ति या पराशक्ति के रूप में भी जाना जाता है। क्युँकि जब सृष्टि भी नहीं थीं तब ये थीं।

रूप वर्णन : कुष्माण्डा को आठ या दस हाथों वाली देवी के रूप में दिखाया जाता है। ये अपने हाथों में त्रिशूल, चक्र, गदा और धनुष जैसे विभिन्न आयुधों को पकडे हुए हैं।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्हें सृष्टि के स्रोत के रूप में माना जाता है। उनकी प्रभा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने में सहायता करती है।

ऊर्जा चक्र : कुष्माण्डा माता मनुष्य शरीर के अनाहत चक्र से जुड़ी हुई है। यह मनुष्य के हृदय के पास स्थित होता है। अनाहत चक्र को वायु तत्व और हरे रंग से जोड़ा जाता है। Aaj Kon Sa Navratri Hai article.

कुष्माण्डा की पूजा से अनाहत चक्र को सक्रिय किया जा सकता है। जिससे प्रेम, करुणा और आंतरिक शांति जैसी गुणवत्ताओं को विकसित किया जा सकता है।

कुष्मांडा से संबंधित कथा यह है कि उन्होंने अपनी धीमी -धीमी हंसी से एक ब्रह्मांडीय अंडे से इस संसार की रचना की थी। फिर इन्होने ही सूर्य, चंद्रमा, ग्रह और तारे समेत समस्त सृष्टि को बनाया।

पूजा का विधान : नवरात्रि के नौ दिनों में, भक्त कुष्मांडा को कद्दू, मिठाई और लाल फूल जैसी विभिन्न चीजें अर्पित करते हैं। कई लोग व्रत रखते हैं।

कुष्मांडा माता की नवरात्रि के चौथे दिन पूजा की जाती है। देवी अपने भक्तों को सुख -समृद्धि , यश-कीर्ति प्रदान करती है।

इस दिन दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। जिसका Link ऊपर दिया गया था।

साथ ही कूष्माण्डा माता मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए। इससे आपको मन की मुराद मिल जाएगी।

कूष्माण्डा माता मन्त्र : (Aaj Kon Sa Navratri Hai )

“या देवी सर्वभूतेषु, कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Kushmanda Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

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5. स्कंदमाता (Skandamata – Fifth Navratri 13th April 2024)

स्कंदमाता , देवी दुर्गा की पांचवीं अवतार हैं। नवरात्र के पांचवें दिन इनकी पूजी की जाती है। “स्कंद” भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को दर्शाता है, जो देवी पार्वती के पुत्र हैं, और “माता” माँ का अर्थ होता है।

इसलिए, स्कंदमाता का अर्थ – भगवान कार्तिकेय की माँ होता है।

Skandmata: Aaj Kon Sa Navratri Hai.

रूप वर्णन : स्कंदमाता के चार हाथ हैं। उनके दो हाथों में कमल का फूल होता है जबकि दूसरे दो हाथों से वह भगवान स्कंद को गोद में उठाये रहती हैं। ये ममतामयी मां का प्रतीक हैं। और अपने भक्तों को मां का प्यार, संरक्षण और पोषण प्रदान करती हैं। Aaj Kon Sa Navratri Hai .

ऊर्जा चक्र : स्कंदमाता विशुद्ध चक्र से जुड़ी हुई हैं। यह मानव शरीर का पांचवा ऊर्जा चक्र होता है। यह गले के पास स्थित होता है।

विशुद्ध चक्र आकाश तत्व और नीले रंग से जुड़ा है। स्कंदमाता की उपासना करके, व्यक्ति अपनी संचार क्षमता, रचनात्मकता और अभिव्यक्ति कौशल को सुधार सकता है।

स्कंदमाता से जुड़ी कथा के अनुसार वह भगवान कार्तिकेय की माँ मानी जाती हैं। कार्तिकेय भगवान गणेश के बड़े भाई हैं।

उन्होंने अपनी माँ स्कंदमाता की सहायता से देवताओं को दुर्जय राक्षस तारकासुर से बचाया था। स्कंदमाता अपने बेटे को उसकी लड़ाइयों में सहायता प्रदान करती हैं। और उसे शक्ति और साहस देती रहती हैं।

पूजा का विधान : नवरात्र के पांचवें दिन, भक्त को स्कंदमाता के पूजा करनी चाहिए। तथा उन्हें केले, मिठाई और लाल फूल जैसी विभिन्न चीजें अर्पण करनी चाहियें। बहुत से लोग नवरात्र के पांचवें दिन देवी को प्रसन्न रखने के लिए उपवास भी करते हैं। Aaj Kon Sa Navratri Hai.

स्कंदमाता माँ के पूजन से भक्त को संरक्षण, प्यार और पोषण के आशीर्वाद प्राप्त होते हैं और विशुद्ध चक्र सक्रिय होता है। जिससे आध्यात्मिक विकास प्राप्त किया जा सकता हैं।

आज के दिन साधक को दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। इससे बंद किस्मत के दरवाजे भी खुल जाते हैं।

इसके साथ -साथ स्कंदमाता माता मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए। इससे आपको मन की मुराद मिल जाएगी।

स्कंदमाता माता मन्त्र :

“या देवी सर्वभूतेषु, स्कंदमाता रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Skandamata Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

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6. कात्यायनी (Katyayani – Sixth Navratri 14th April 2024)

कात्यायनी देवी दुर्गा की छठी रूप हैं और नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। ये देवी कात्यायन ऋषि के घर पुत्री रूप में पैदा हुई थीं इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। title – Aaj Kon Sa Navratri Hai

रूप वर्णन : कात्यायनी चार हाथों वाली हैं। अपने हाथों में इन्होने एक तलवार, कमल, फरसा और रस्सी धारण किये हुए हैं । इन्हे साहस, शक्ति और विजय की देवी माना जाता है।

ऊर्जा चक्र : कात्यायनी अज्ञा चक्र से जुड़ी हुई हैं। यह मनुष्य का छठा ऊर्जा चक्र होता है। अज्ञा चक्र भ्रूमध्य (भवों के बीच) स्थित होता है। यह प्रकाश तत्व और इंडिगो रंग से जुड़ा हुआ है।

कात्यायनी की पूजा करके, अज्ञा चक्र को सक्रिय किया जा सकता है। जिससे आप अनुभूति, दृष्टिशक्ति और बुद्धिजीवन का विकास कर सकते है।

कात्यायनी के संबंध में कथा है कि एक बार धरती पर दानवों का बहुत आतंक बढ़ गया था। ऐसे में ऋषि कात्यायन ने उनकी साधना की और अपने घर जन्म लेने की विनती की।

देवी ने प्रसन्न होकर उन ऋषि के घर जन्म लिया। इसके बाद उन्होंने सारे दानवों का संहार किया। अंत में वे राक्षस महिषासुर से नौ दिन और रात तक लड़ी। और दसवें दिन उसे मार डाला। इस दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।

पूजा का विधान : नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी की पूजा की जाती है। उन्हें मधु, गुड़ और लाल फूल आदि चढ़ाया जाता है। बहुत से लोग नवरात्रि के छठे दिन उपवास रखते हैं और केवल फल, दूध लेते हैं।

समग्र रूप से, कात्यायनी माता जीवन में बाधाओं से निपटने, साहस, शक्ति और विजय का वरदान देती है। और अज्ञा चक्र को सक्रिय करके कल्याण करती हैं।

इस दिन दुर्गा चालीसा का पाठ अत्यंत शुभ फलदायी होता है।

साथ ही कात्यायनी माता मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए। इससे आपके सारे संकट दूर होंगे तथा जीवन में हमेशा समृद्धि रहेगी।

कात्यायनी माता मन्त्र :

“या देवी सर्वभूतेषु, कात्यायनी रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Katyayani Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

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7. कालरात्रि (Kalaratri – Seventh Navratri 15th April 2024)

दुर्गा के सातवें रूप का नाम कालरात्रि है। इनकी नवरात्रि के सातवें दिन पूजा की जाती है। “काल” का अर्थ मृत्यु होता है, और “रात्रि” का अर्थ है -रात। इसलिए, कालरात्रि का अर्थ हुआ – मृत्यु की रात की देवी।

रूप वर्णन : कालरात्रि माता का रंग रात की तरह काला है, बाल बिखरे हुए हैं, आँखे लाल हैं, जीभ निकली हुई है और चार हाथों वाली हैं।

वे अपने बाएं हाथ में एक तलवार और एक जाल ले कर खड़ी होती हैं , और अपने दाएं हाथ में एक मशाल और एक वज्र ले कर दिखाई देती हैं। उन्हें विनाश की देवी माना जाता है।

ऐसा भयंकर रूप धरकर वे नकारात्मकता और बुराई को नष्ट करती हैं।

इतना भयंकर रूप देवी ने सिर्फ दानवों को मारने की लिए धरा है। लेकिन अपने सच्चे भक्तों पर देवी सदा दया दृष्टि रखती हैं। तथा उनकी बुरे लोगों से रक्षा करती है। Post – Aaj Kon Sa Navratri Hai .

ऊर्जा चक्र : कालरात्रि सहस्रार चक्र से जुड़ी हुई हैं। यह मनुष्य के शरीर का सातवें चक्र होता है। सहस्रार चक्र सिर के शीर्ष पर स्थित होता है।

यह विचार तत्व और वायलेट या सफेद रंग से जुड़ा होता है। कालरात्रि की पूजा करके, एक व्यक्ति सहस्रार चक्र को सक्रिय कर spiritual enlightment प्राप्त कर सकता है।

कालरात्रि से जुड़ी कथा है कि उन्होंने शुंभ-निशुंभ, और रक्तबीज जैसे कई राक्षसों को पराजित किया है। उन्हें मृत्यु का भय दूर करने वाली और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली शक्ति माना जाता हैं।

पूजा का विधान : नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान, भक्त अलग-अलग प्रकार के भोग कालरात्रि को अर्पित करते हैं, जैसे गुड़, नारियल और काले तिल। कई लोग देवी से इच्छित वर पाने की लिए उपवास भी करते हैं ।

सारांश में कालरात्रि माता को नवरात्रि के सातवें दिन पूजा जाता है ताकि वह भक्तों को बुराई से संरक्षण प्रदान करे। मृत्यु का भय दूर करे और सहस्रार चक्र को सक्रिय करके सुख – समृद्धि प्रदान करें।

कालरात्रि को खुश करके के लिए भक्तों को दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। दुर्गा चालीसा पढ़ें – Durga Chalisa – Durga Chalisa Pdf .

साथ ही कालरात्रि माता मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए। इससे कालरात्रि आपको मनचाहा वर देंगी।

कालरात्रि माता मन्त्र :

“या देवी सर्वभूतेषु, कालरात्रि रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Kalaratri Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

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8. महागौरी (Mahagauri – Eighth Navratri 16th April 2024)

महागौरी दुर्गा की आठवीं रूप हैं। ये नवरात्री के आठवें दिन पूजी जाती हैं। “महा” का अर्थ है महान का अर्थ है जबकि “गौरी” मतलब – सफेद रंग ।

इसलिए, महागौरी का अर्थ है महान शुद्धता या आभा की देवी। (Article – 9 Forms of Durga adn Aaj Kon Sa Navratri Hai).

रूप वर्णन : महागौरी अत्यधिक सुन्दर आभा वाली तथा श्वेत रंग की हैं। इनके चार हाथ हैं जिसमें त्रिशूल, तंबोरिन, कमल और कमंडलु (जल पोत) धारणा किया हुआ है। ये शुद्धता, शांति और संतुलन की देवी मानी जाती है।

ऊर्जा चक्र : महागौरी का संबंध मणिपुर चक्र से होता है। यह मानव शरीर में तीसरा चक्र होता है। मणिपुर चक्र नाभि के पास स्थित होता है और अग्नि तत्व और पीले रंग से जुड़ा होता है।

महागौरी की पूजा से मणिपुर चक्र को सक्रिय किया जा सकता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति और आत्मसम्मान बढ़ता है। (Aaj Kon Sa Navratri Hai).

महागौरी की प्रचलित कथा के अनुसार, महागौरी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। धूप में लगातार बैठने से उनका रंग कला पड़ गया था।

जब शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए तो उन्होंने अपने जूड़े से गंगा जल लेकर गौरी पर डाला। इससे वे अन्यन्त श्वेत और आभामयी हो गयीं। इसी से उनका नाम महागौरी पड़ा।

पूजा का विधान : महागौरी की पूजा के दौरान भक्त को उन्हें नारियल, केले और सफेद फूल आदि अर्पण करने चाहियें। उनका उपवास भी रखना चाहिए।

संपूर्ण रूप से, महागौरी माता नवरात्री के आठवें दिन पूजी जाती है ताकि शुद्धता, शांति और संतुलन के आशीर्वाद मिल सकें और मणिपुर चक्र सक्रिय हो सके।

पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। साथ ही महागौरी माता मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए। इससे आपको मनवांछित फल मिलेगा।

महागौरी माता मन्त्र :

“या देवी सर्वभूतेषु, महागौरी रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Mahagauri Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

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9. सिद्धिदात्री (Siddhidatri – Ninth Navratri 17th April 2024)

सिद्धिदात्री देवी दुर्गा का नौवां और अंतिम रूप है और नवरात्रि के नौवें दिन पूजा जाता है। “सिद्धि” का अर्थ है गुप्त विद्या, और “दात्री” का मतलब है देने वाली। इसलिए, सिद्धिदात्री माता के नाम का अर्थ है – गुप्त विधाएँ देने वाली देवी।

रूप वर्णन : सिद्धिदात्री चार हाथों वाली हैं। उनकी हाथों में गदा, कमल, शंख, और चक्र होते हैं। वह गुप्त विद्या, ज्ञान, और बुद्धि की देवी मानी जाती है। (Post- Aaj Kon Sa Navratri Hai).

ऊर्जा चक्र : सिद्धिदात्री सहस्रार चक्र से जुड़ी हुई है। जो मानव शरीर में सातवाँ चक्र या ऊर्जा केंद्र होता है। सहस्रार चक्र सिर के ताज पर स्थित होता है और यह विचार तत्व और सफेद रंग से जुड़ा हुआ होता है।

सिद्धिदात्री की पूजा करके, व्यक्ति सहस्रार चक्र को सक्रिय कर सकता है और अनेक विद्याएं हासिल कर सकता है।

सिद्धिदात्री से जुड़ी कथा है कि भगवान शिव ने उनकी उपासना करके आठ सिद्धियां (आध्यात्मिक शक्तियां) प्राप्त की थीं।

उपासना करते हुए शिव का आधा शरीर सिद्धिदात्री जैसा हो गया था। इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर भी बोला जाता है।

ये आठ सिद्धियां इस प्रकार से हैं :

अनिमा – किसी भी वस्तु का सूक्ष्म रूप देख पाने की क्षमता।
महिमा -शरीर को बड़ा करने की शक्ति।
लघिमा – उड़ने की शक्ति।
प्राप्ति – किसी भी दुर्लभ वस्तु को प्राप्त करना।
प्राकाम्या – किसी भी वस्तु को चाहे बिना प्राप्त करना।
ईशिता – किसी को भी आकर्षित करने की शक्ति।
वशित्व – दूसरों को वश में करने की शक्ति।
कामावासायिता – जो भी विचार करना उसके पूर्ण होने की शक्ति।

ये सारी सिद्धियां सिद्धिदात्री के तंत्र -मंत्र, योग, ध्यान और साधना के द्वारा प्राप्त की जाती हैं।

पूजा का विधान : सिद्धिदात्री को खुश करके के लिए दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ करना चाहिए। दुर्गा चालीसा – Durga Chalisa – Durga Chalisa Pdf .

और सिद्धिदात्री मन्त्र पढ़ना चाहिए। सिद्धिदात्री माता मन्त्र का जाप 3, 5, 7 या 108 बार करना चाहिए।

सिद्धिदात्री माता मन्त्र :

“या देवी सर्वभूतेषु, सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

“Ya Devi Sarva Bhuteshu, Siddhidatri Rupena Samsthita,
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namaha”

नवरात्री और काला जादू

बहुत कम लोग जानते हैं कि नवरात्रे काळा जादू से भी जुड़े हैं। इन दिनों कुछ डायन और डैया (मर्द) दूसरों पर मारण, बाण, मोहन, स्तम्भन, उच्चाटन, आदि अनेक प्रकार के तंत्र कर देते हैं।

इससे लोगों को तरह -तरह के कलेश लग जाते हैं। जैसे नौकरी न लगना, पढ़ाई में कमजोर होना , तरह -तरह की बीमारियाँ होना, घर में लड़ाई -झगड़ा होना आदि।

ये डायन और डैया आखरी नवरात्री की आधी रात को शमशान जाते हैं। और वहां एक मुर्दे को जगाकर उसकी उपासना करते हैं। फिर नग्न होकर नृत्य करते हैं। इससे इनकी शक्तियां बढ़ जाती हैं।

लेकिन ईश्वर ने मनुष्य को आत्मरक्षा का मौका भी दिया है। और वह हैं नवरात्री में देवी दुर्गा के नौ रूपों की सात्विक भक्ति।

आप हर नवरात्री के दिन उस देवी के मन्त्र को 108 बार जाप करें। यदि समय न हो तो 7 और 21 बार कर लें। तथा सुबह , दोपहर, शाम और रात को मन्त्र जाप करते रहें।

इससे अगर आप पर किसी ने कोई तंत्र किया होगा तो वह नष्ट हो जायेगा। और दुबारा कोई भी काली शक्ति आपको छू नहीं पायेगी।

अष्ट मातृकाएँ और चौसठ योगिनी

दोस्तो, नवरात्रों में आप यदि देवी के 9 रूपों की पूजा करते हो तो आपकी अष्ट मातृकाएँ और चौसठ योगिनी भी सिद्ध हो जाती हैं। (Blog – Aaj Kon Sa Navratri Hai).

तांत्रिक भी इनकी पूजा करते हैं। लेकिन वे इनका उपयोग काले जादू के लिए करते हैं।

लेकिन अगर आप इनकी उपासना सिर्फ सात्विक रूप से करेंगे तो काला जादू आपका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। क्युँकि ये योगनियाँ आपकी खुद रक्षा करने लगेंगी।

आइये अब जानते हैं कि अष्ट मातृकाएँ और चौसठ योगिनियाँ कौन हैं।

अष्ट मातृकाएँ कौन हैं:

पुराने समय में असुरों और देवताओं में भयंकर युद्ध हुआ था। एक वक्त तो ऐसा लग रहा था जैसे असुर जीत जायेंगे। तभी 8 देवियों की उत्पति हुई। इन्हे ही अष्ट मातृकाएँ कहा जाता है।

हर ईश्वर ने अपने नारीत्व से इन शक्तियों को उत्पन्न किया था। आगे चलकर हर मात्रिका से 8 योगनियाँ पैदा हुईं। इस तरह कुल 8 X 8 = 64 योगनियों की उत्पति हुई। (Blog – Aaj Kon Sa Navratri Hai).

इन 64 योगनियों ने भीषण मार -काट मचाई। और असुरों का वध करके देवताओं को जीत दिलाई। इन योगनियों में आसुरी भाव भी था। तभी ये असुरों का मुकाबला कर पाए।

और इसी का फायदा उठकर तांत्रिक इनकी उपासना करके काला जादू या तंत्र विद्या सीखते हैं।

अष्ट मातृकाओं के नाम इस प्रकार से हैं:

1. ब्रह्माणी – ब्रह्मा भगवान से उत्पन्न हुई देवी।
2. वैष्णवी – विष्णु के साथ जुड़ी हुई शक्ति।
3. महेश्वरी – भगवान शिव के साथ जुड़ी हुई देवी।
4. इंद्राणी – देवराज इंद्र के साथ जुड़ी हुई देवी। (Aaj Kon Sa Navratri Hai)
5. कौमारी – ये देवी भगवान स्कंद (कार्तिकेय), भगवान शिव के पुत्र, के साथ जुड़ी हुई हैं।
6. वाराही – ये देवी वराह रूपी विष्णु द्वारा उत्पन्न हुई हैं।
7. चामुण्डा – देवी काली के साथ जुड़ी हुई हैं। तथा इनका रूप है।
8. महालक्ष्मी – धन और समृद्धि की देवी हैं। विष्णु से ही जुड़ी हुई हैं।

64 योगनियाँ (Aaj Kon Sa Navratri Hai)

सभी योगनियों के नाम तथा उपासना के फल इस प्रकर से हैं। नवरात्रों की 9 देवियों की पूजा करने से इन 64 योगनियों के सात्विक रूप अपने -आप ही सिद्ध हो जाते हैं। इसके बाद इनका तामसिक प्रभाव (काला जादू ) आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

Navratri 64 yogini

1. दिव्ययोगिनी (Divyayogini) – दिव्ययोगिनी भगवती काली की एक विशेष रूप हैं। वे आकर्षक और शक्तिशाली हैं। ये आत्म-साक्षात्कार की ओर प्रेरित करती हैं। इन्हे आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए पूजा जाता है।

2. महायोगिनी (Mahayogini) – ये देवी हमेशा योग साधना में लीन हैं। वे सभी योगियों और आध्यात्मिक उत्तराधिकारियों की परम आत्मा हैं। इनके उपासक योग मार्ग में सफल होते हैं।

3. सिद्धयोगिनी (Siddhayogini) – इस रूप में माँ काली को सिद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा जाता है। उन्हें आध्यात्मिक साधना और सिद्धियों के प्राप्ति के लिए जागृत किया जाता है। Aaj Kon Sa Navratri Hai.

4. गणेश्वरी (Gaṇesvari) – यह रूप युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए उपासक द्वारा पूजा जाता है।

5. प्रेताक्षी (Pretakṣi) – काली की यह अवतारिका पिशाचों और उनकी शक्तियों से भक्तों की रक्षा करती है। वे भूत-प्रेतों के शक्तिशाली आक्रमणों को रोकती हैं।

6. डाकिनी (Ḍakini) – यह रूप डायनों द्वारा पूजा जाता है। ये उन्हें उनके प्रकार की तंत्र शक्तियां देता है।

7. काली (Kali) – भगवती काली दुर्गा के सबसे प्रमुख और भयंकर रूपों में से एक हैं। ये खड़ग (तलवार) लिए हुए हैं और एक हाथ में कटा हुआ सिर लिए हैं। Yogini – Aaj Kon Sa Navratri Hai.

8. कालरात्रि (Kalaratri) – भगवती काली की यह अवतारिका अंधकार को प्रकाश में बदलती है। ये भक्तों की काले जादू से रक्षा करती है। और डाकिनी इनके भक्तो को नहीं सताती। इसलिए नवरात्री में इनकी पूजा करनी चाहिए।

9. निशाचरी (Nisacari) – भगवती काली की रात्रि और अंधकार की शक्ति का प्रतीक है। ये रात में विचरण करती हैं। भूत -प्रेत इनसे थार -थार कांपते हैं। Hindi article – Aaj Kon Sa Navratri Hai.

10. झंकारी (Jhaṃkari) – झंकारी भगवती काली की अवतारिका हैं। ये वीरता, उन्नति और सृष्टि के शक्तिशाली पहलु का प्रतीक है। वे साधकों को अनेक वरदान देती हैं।

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11. ऊर्द्ववेताली (Urdvavetali) – भगवती काली की यह अवतारिका सभी बेतालों की देवी है। यह अपने उपासकों को अद्भुत शक्तियां देती है।

12. खर्परी (Kharpari) – माँ काली का यह अवतार खून से भरा हुआ खप्पर लिए रहता है। यह अपने भक्तों की सभी आसुरी शक्तियों से रक्षा करती है।

13. ऊर्द्वकेशी (Urdvakesi) – इस देवी के बाल हर ओर बिखरे हुए हैं। तथा दानव इनके रूप को देखकर ही डर कर भाग जाते हैं। Aaj Kon Sa Navratri Hai hindi me.

14. भूतयामिनी (Bhutayamini) – यह देवी भूत, पिशाच, और निशाचरों की संरक्षिका है। लेकिन अपने उपासकों का अहित नहीं होने देती।

15. विरुपाक्षी (Virupakṣi) – भगवती काली की यह अवतारिका नेत्रों की असमान और अद्वितीय शक्ति का प्रतीक है। उपासक को गड़े खजाने देखने की शक्ति देती हैं।

16. फेत्कारी (Phetkari) – महा काली का यह अवतार विश्वास और आत्म – शक्ति का प्रतीक है। ये अशुभ ऊर्जाओं को नष्ट करती हैं। तथा साधकों को शुभ फल देती हैं।

17. शुष्कंगी (Suṣkaṃgi) – काली का यह अवतार देखने में कठोर स्वभाव का है। लेकिन यह देवी शत्रुओं को ही प्रताड़ित करती है। और अपने साधकों की रक्षा करती है।

18. मांसभोजनी (Mansabhojani) – भगवती काली की यह अवतारिका अदम्य शक्ति का प्रतीक है। यह मांस और मदिरा का भोग करती हैं। इससे इनमें असुरों का वध करने की शक्ति आती है।

19. वीरभद्राक्षी (Virabhadrakṣi) – ये माता वीरता और साहस की देवी है। वे साधकों को जीवन के संघर्ष से लड़ने की हिम्मत देती हैं। (Aaj Kon Sa Navratri Hai janiye ).

20. धूम्राक्षी (Dhumrakṣi) – यह देवी धूप और धुंआ की स्वामिनी है। वे दानवों को धुएँ से प्रताड़ित करती हैं तथा तेज धूप से जला भी सकती हैं।

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21. कलहप्रिया (Kalahapriya) – ये देवी विवादों और कलहों के आदान-प्रदान में रुचि रखती है। देवी उपासकों को विवादों को सुलझाने में मदद करती हैं तथा शत्रु के घर में कलह उत्पन्न करवाती हैं ।

22. रक्ता (Rakta) – भगवती काली की यह रूप रक्त (लाल) रंग की हैं। वे दुष्टों का खून पीकर अपने साधकों की रक्षा करती हैं।

23. घोररक्ताक्षी (Ghoraraktakṣi) – भगवती काली की यह अवतार देवी बेहद क्रूर और भयंकर रूप से शक्तिशाली है। वे हर दैत्य – दानव का वध करने में सक्षम हैं। (Aaj Kon Sa Navratri Hai.)

24. पिशची (Pisaci) – माँ काली की यह अवतारिका असाध्य अराजक शक्तियों को प्रकाश में बदलती है। वे अशुभ ऊर्जाओं को नष्ट करती हैं और साधकों को शक्तियां प्रदान करती हैं।

25. भयंकरी (Bhayaṃkari) – यह देवी भयंकर शक्ति और उत्कृष्टता की प्रतीक है। वे साधकों को अध्यात्मिक ऊर्जा के साथ जोड़ती हैं और उन्हें भय और असुरक्षा से मुक्त करती हैं।

26. चौरिका (Caurika) – भगवती काली की यह अवतारिका व्यक्तिगत और सामाजिक सुरक्षा की देवी है। वे अधर्मियों और अन्यायियों के खिलाफ खड़ी होती हैं और धर्म और न्याय की रक्षा करती हैं।

27. मारिका (Marika) – यह देवी मार -काट मचाने के लिए जानी जाती हैं। काली शक्तियाँ इनके नाम से ही डरती हैं।

Aaj Kon Sa Navratri Hai.

28. चण्डी (Chaṇḍi) – भगवती काली की यह रूप वीरता और शक्ति की देवी है। वे शक्तिपूर्ण और निर्भीक है। इन्हे युद्ध की देवी भी माना जाता है। (Artcile – Aaj Kon Sa Navratri Hai).

29. वाराही (Varahi) – भगवती काली की यह अवतार वाराह रूपिणी है, जो धरती की रक्षिका है। वे भूमि और धरा की सुरक्षा करती हैं और साधकों को आध्यात्मिक ऊर्जा से जोड़ती हैं।

30. मुण्डधरिणी (Muṇḍadhariṇi) – यह देवी शत्रुओं के सिर काटकर उनके मुंडों की माला धारण करती है। अपने साधकों को आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर आगे बढ़ती हैं, तथा उन्हें अशुभ ऊर्जाओं से मुक्ति दिलाती हैं।

Aaj Kon Sa Navratri Hai

31. भैरवी (Bhairavi) – माता काली की यह अवतारिका भैरव रूप में प्रकट होती है। यह उपासकों को अनेक सिद्धियां देती है।

32. चक्रिणी (Chakriṇi) – भगवती काली की यह अवतारिका चक्र धारण करती है। यह आध्यात्मिक चक्रों की संरक्षिका है। तथा आध्यात्मिक ऊर्जा के विकास में सहायक होती हैं।

33. क्रोधा (Krodha) – माँ काली की यह अवतारिका क्रोध के लिए जानी जाती हैं। अपने क्रोध से किसी को भी भस्म कर सकती हैं।

34. दुर्मुखी (Durmukhi) – काली की यह अवतारिका भयंकर चेहरे वाली हैं। दानव इन्हे देखकर ही काँप उठते हैं।

35. प्रेतवाहिनी (Pretavahini) – यह देवी पिशाचों और प्रेतों की देवी है और उनकी रक्षा करती है। वे साधकों को अशुभ ऊर्जाओं से मुक्ति दिलाती हैं । Aaj Kon Sa Navratri Hai – Mata ke navratri.

36. कण्टकी (Kaṇṭaki) – भगवती काली की यह अवतारिका कंटकों की रक्षिका है। वे साधकों को आध्यात्मिक ऊर्जा से जोड़ती हैं और उन्हें अशुभ ऊर्जाओं से मुक्ति दिलाती हैं।

37. दीर्घलंबौष्ठी (Dīrghalaṃbauṣṭhi) – महा काली की इस अवतार के बड़े -बड़े होंठ हैं तथा यह शत्रुओं का भक्षण कर जाती हैं।

38. मालिनी (Malini) – देवी काली की यह अवतारिका माला रूपिणी है, जो आत्म-साक्षात्कार और उन्नति की देवी है। वे साधकों को उच्च आध्यात्मिक अवस्था तक पहुंचाती हैं।

39. मन्त्रयोगिनी (Mantrayogini) – भगवती काली की यह अवतारिका मन्त्र-योग की देवी है। ये साधकों को ऐसे मन्त्र देती हैं जिनसे शत्रुओं का विनाश किया जा सकता हैं। Aaj Kon Sa Navratri Hai.

40. कालाग्नी (Kalagni) – भगवती काली की यह अवतारिका काल की शक्ति का प्रतीक है। इनकी आग में जलकर शत्रु और दानव आदि नरक जाते हैं।

Aaj Kon Sa Navratri Hai

41. मोहिनी (Mohini) – यह देवी भगवान विष्णु की रूपांतरणी रूप में प्रकट होती है। यह मोहन विद्या और सम्मोहन की शक्तियों के लिए जानी जाती हैं।

42. चक्री (Chakri) – भगवती काली की यह अवतारिका देवी चक्र-धारिणी है, जो आध्यात्मिक चक्रों की रक्षिका है।

43. कपाली (Kapali) – यह देवी कपालों (skull ) की देवी है। यह साधकों को तंत्र विद्या प्रदान करती हैं।

44. भुवनेश्वरी (Bhuvanesvari) – भगवती काली की यह अवतारिका भूलोक की देवी है, जो जगत की रक्षिका है। देवी अपने उपासकों को विपदाओं से मुक्ति दिलाती हैं। October – Aaj Kon Sa Navratri Hai.

45. कुण्डलाक्षी (Kuṇḍalakṣi) – यह देवी कुण्डिलिनी शक्ति की स्वामिनी हैं। ये साधकों को आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ जोड़ती हैं और उन्हें उच्च आध्यात्मिक अवस्था तक पहुंचाती हैं।

46. जुही (Juhi) – भगवती काली की यह अवतार देवी जुही के पुष्पों की देवी है, जो सौंदर्य और सुख के प्रतीक है। ये व्यक्तिगत और सामाजिक आनंद की देवी हैं। ये साधकों को सुख और शांति प्रदान करती हैं।

47. लक्ष्मी (Lakṣmi) – यह माता धन और समृद्धि की देवी है। यह साधकों को समृद्धि, सफलता और धन देती हैं। तथा उनकी आर्थिक उन्नति करती हैं।

48. यमदूती (Yamaduti) – यह देवी यमराज की दूतिनी है। यह साधक की अकाल मृत्यु से रक्षा करती हैं। तथा शत्रुओं को यमलोक भेजती हैं। ( Blogpost – Aaj Kon Sa Navratri Hai October 23).

49. करालिनी (Karalini) – यह देवी बेहद वीर और उग्र रूपिणी है। वे रक्षा की देवी हैं, और साधकों को भयानक शक्तियों से मुक्ति दिलाती हैं।

50. कौशिकी (Kausiki) – भगवती काली की यह अवतार राजर्षि विश्वामित्र की पुत्री है। ये आध्यात्मिक ज्ञान और विद्या की देवी हैं, और साधकों को ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ाती हैं।

Aaj Kon Sa Navratri Hai – October 2023 Navratri

51. भक्षिणी (Bhakṣiṇi) – काली का यह रौद्र रूप दुष्टों का भक्षण करता है। देवी अपने उपासकों की रक्षा तथा दुश्मनों का नाश करती है।

52. यक्षी (Yakṣi) – भगवती काली की यह अवतारिका यक्षिणी रूप में प्रकट होती ह। यह साधकों को आर्थिक और आध्यात्मिक उन्नति में मदद करती हैं।

53. कौमारी (Kaumari) – यह देवी कुमारी रूपिणी है। यह ब्रह्मचारिणी हैं तथा यौवन की देवी है। ये भक्तों को युवावस्था तथा आत्म-संयम प्रदान करती हैं। Hindu Festival – Aaj Kon Sa Navratri Hai.

54. यन्त्रवहिनी (Yantravahini) – भगवती काली की यह अवतार देवी यन्त्रों की देवी है। वे यंत्रिक शक्तियों के साथ जुडी हैं। साधकों की यंत्रों के माध्यम से रक्षा करती हैं।

55. विशाला (Visala) – यह देवी विशालता और आकाश की देवी है। इस रूप में वे विशाल राक्षसों और बाधाओं को नष्ट करती हैं।

56. कामुकी (Kamuki) – भगवती काली की यह अवतारिका काम -वासना की देवी है। तांत्रिक इनकी साधना करके किसी को भी काम की लत लगवा सकते हैं।

57. व्याघ्री (Vyaghri) – भगवती काली की यह अवतार बाघ रूप धरती हैं। यह भयानक शक्तियों की देवी है। अपने साधकों को अशुभ ऊर्जाओं से मुक्ति दिलाती हैं। लेकिन तांत्रिक इनकी उपासना करके बाघ बनने की शक्ति हासिल करते हैं। ।

58. याक्षिणि (Yakṣini) – माँ काली की यह अवतार देवी यक्षिणी रूप में प्रकट होती ह। यह वृक्षों पर वास करती हैं। तथा साधक को समृद्धि और व्यापारिक उन्नति देती है। Aaj Kon Sa Navratri Hai – Sharad.

59. प्रेतप्भवानी (Pretbhavani) – माता काली की यह अवतार प्रेत लोक की देवी है। सारे प्रेत इनके वश में हैं।

60. धूर्जटा (Dhurjaṭa) – महा काली की यह अवतारिका अद्वितीय और अज्ञात रूपिणी है। वे साधकों को अदृश्य होने की शक्ति देती हैं।

Aaj Kon Sa Navratri Hai – Sharad Navratri

61. विकता (Vikata) – देवी काली की यह अवतार देखने में भीषण रूपिणी है। वे भयानक शक्तियों की देवी हैं और साधकों को अशुभता से मुक्ति दिलाती हैं।

62. घोरा (Ghora) – माता की यह अवतारिका भीषण और अत्यधिक भयंकर रूपिणी हैं। असुर उन्हें देखकर ही डर से बेहोश हो जाते हैं।

63. कपाला (Kapala) – भगवती काली की यह अवतारिका कपालों की देवी है। वे कपाल पकडे रहती हैं और दानवों का खून उसमें भरकर पी जाती हैं। (Aaj Kon Sa Navratri Hai – Devi Durga Navratri).

64. लङ्गली (Langali) – माँ काली की यह अवतार वाणी की देवी है। वे ज्ञान और वाणी के माध्यम से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करती हैं।

दोस्तो, ये सभी 64 योगनियाँ अष्ट -मातृका से ही उत्पन्न हुई हैं। तांत्रिक इनकी साधना करके इनके द्वारा दी गयी शक्तियों का गलत उपयोग भी करते हैं। जिसे हम काला जादू के नाम से जानते हैं।

लेकिन अगर आप नवरात्री में दुर्गा के 9 रूपों की पूजा कर लेंगे तो ये 64 योगनियाँ आप से भी प्रसन्न हो जाएँगी। और काला जादू कभी आप के ऊपर असर नहीं करेगा।

इसलिए नवरात्री का लाभ उठाएं और प्रतिदिन दुर्गा माता की पूजा करें।

समाप्त।

दोस्तो, उम्मीद है आपको दुर्गा के नौ रूपों की सारी जानकारी मिल गयी होगी। साथ ही इस पोस्ट से आपको हमेशा पता चलता है कि आज कौन सा नवरात्र है (Aaj Kon Sa Navratri Hai )। धन्यवाद।

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