A horror story in Hindi : Karn- Pisachini (कर्ण-पिशाचिनी)

Note : काले जादू पर आधारित यह कहानी (horror story in Hindi) पूर्णतया लोक -कथा पर आधारित है।

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Horror story in Hindi- Karn-Pisachini

Horror story in Hindi – कर्ण पिशाचिनी

नीलेश अपनी नौकरी से बहुत दुखी था । कहाँ तो उसने एक दिन गाड़ी -बंगले होने के सपने देखे थे और
कहाँ वो इस 10,000 की नौकरी में फँसा पड़ा हुआ था।

वो अपने बॉस से नफरत करता था। अपने colleagues से नफरत करता था।
यहाँ तक कि घर पर मौजूद अपनी सुन्दर बीबी से भी नफरत करता था।

कुल मिलाकर वो भगवान से भी नफरत करता था क्युँकि उसने उसका अमीर ज़िदगी का सपना पूरा नहीं किया था।

बस से उतरकर जैसे ही वो घर की तरफ बढ़ा उसने देखा कि एक अति भयंकर दिखने वाला बाबा बैठा हुआ है।
उसकी जटायें बढ़ी हुई थीं। उसके पूरे शरीर पर राख लगी हुई थी। और चिल्म के कश लगा रहा था।

नीलेश कुछ सोचकर उसकी तरफ बढ़ा । और उसके चरण -स्पर्श किये।
टिफ़िन से निकालकर lunch भी उसे दे दिया जो उसने खुद नहीं खाया था।

लेकिन बाबा उसे देखता रहा।
जब नीलेश जाने लगा तो बाबा ने कहा – सब मुझसे दूर भागते हैं।
लेकिन मैं तुम्हारे व्यवहार से खुश हूँ। बताओ क्या परेशानी है ?

मैं ज़िंदगी से परेशान हो चुका हूँ। क्या आप मेरा मार्गदर्शन कर सकते हैं? नीलेश, बाबा के पास जाकर बोला ।

तेरी किस्मत बदल सकता हूँ – उस बाबा ने कहा ।

सच में बाबा ! कैसे ? नीलेश ने बाबा के पैर पकड़ लिए।

एक तरीका है, लेकिन पता नहीं तुम उसके लिए तैयार होंगे या नहीं।

बाबा, मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूँ। मैं अपनी जिंदगी से तंग आ चूका हूँ।

तो आज रात 12 बजे शमशान आ जाना । सब पता चल जायेगा ।
कहकर बाबा कहीं चला गया ।

जब रात के 12 बजे तो नीलेश उठा और शमशान की तरफ चल पड़ा ।
शमशान पहुँचकर उसने देखा कि बाबा वहाँ धूना रमा कर बैठा है ।

मैं आ गया बाबा – नीलेश उसके पास जाकर बोला ।

अगर तू ज़िंदगी बदलना चाहता है तो 41 दिन वाली कर्ण-पिशाचिनी की साधना कर ।
उसके बाद उस अघोरी बाबा ने विस्तार से उसे साधना का तरीका बताया। लेकिन ये भी कहा कि यदि इसका उपयोग किसी का बुरा करने के लिए किया तो भीषण परिणाम हो सकते हैं ।

नीलेश साधना के लिए तैयार हो गया । उसने 41 दिन तक विधिवत रूप से कर्ण-पिशाचिनी की साधना की ।
ये सब उसने अपनी पत्नी से छुपा कर किया था ।

जब साधना का आखिरी दिन पूरा हो गया तो कर्ण-पिशाचिनी एक अपूर्व सुंदरी के रूप में उसके पास पहुंची ।
उसका आलिंगन किया और सदा उसके साथ रहने और उसके काम करने का वायदा किया ।

नीलेश बहुत खुश हुआ ।

धीरे-धीरे नीलेश ने देखा कि उसकी बीबी कमजोर होती जा रही है । उसके चेहरा का रंग सफ़ेद पड़ता जा रहा था मानो उसमें खून ही नहीं बचा था ।


ये सब कर्ण-पिशाचिनी कर रही थी । वो नीलेश के घर में वास करने लगी थी। वो रोज रात को उसकी पत्नी का खून चूस लेती थी।


लेकिन नीलेश ने कर्ण-पिशाचिनी को रोकने के लिए कुछ नहीं किया । बल्कि वो यही चाहता था ।

बहुत इलाज के बाद भी उसकी पत्नी की हालत में सुधार नहीं हुआ और एक दिन वो मर गयी ।

फिर नीलेश ने एक लाटरी डाली और कर्ण-पिशाचिनी की मदद से जीत गया ।
इस तरह वो करोड़ों का मालिक बन गया । अब उसके पास गाड़ी -बांग्ला सब कुछ आ गया।
वह बहुत खुश हो गया।

फिर उसने कर्ण-पिशाचिनी अपने पुराने Boss के पीछे लगा दी जो उसे दुखी करता रहता था ।
Boss बहुत बीमार रहने लगा। और एक महीने में ही उसकी भी मृत्यु हो गयी ।

एक दिन नीलेश ने साक्षी नाम की एक लड़की को देखा । वो उस पर मोहित हो गया ।
वो उसे हर हाल में पाना चाहता था ।लेकिन जब उसने साक्षी को propose किया तो उसने इंकार कर दिया ।

तरह-तरह से लुभाने और डराने से भी जब वो नहीं मानी तो उसने कर्ण-पिशाचिनी को उसके पीछे लगा दिया ।

धीरे-धीरे साक्षी बीमार रहने लगी । बहुत इलाज करवाने के बाद भी जब उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ तो
उसके पिता 26 साल के एक युवक अर्जुन देव के पास गए ।

अर्जुन ने तंत्रिका महा-विद्यालय जिसे प्रोफेसर ओंकार शिवा चलाते थे, से तंत्र – विद्या में महारत हासिल की थी ।

साक्षी की जाँच करके वो समझ गया कि उस पर कर्ण-पिशाचिनी की छाया थी ।

इसके बाद अर्जुन ने एक और शक्तिशाली पिशाचिनी, काल -पिशाचिनी का आवाह्न किया और
उसे कर्ण-पिशाचिनी को रोकने के लिए कहा ।

लेकिन कर्ण-पिशाचिनी ने काल- पिशाचिनी को हरा कर वापस भेज दिया ।
और ये भी कहा कि आने वाली अमावस्या को वो साक्षी के प्राण हर लेगी ।

अब साक्षी के बचने का कोई आसार नहीं बचा था ।

तभी अर्जुन ने देखा कि साक्षी दुर्गा माँ की अदम्य भक्त थी । उसे एक तरीका सूझ गया ।
उसने अमावस्या के दिन साक्षी से दुर्गा माता की एक पूजा करवाई ।

रात को कर्ण-पिशाचिनी आयी और साक्षी के प्राण लेकर जाने लगी ।
जैसे ही वो कब्रिस्तान पहुँची उसे एक आवाज सुनाई दी ।

रुक जा दुष्टा । ये प्राण मुझे वापस कर ।

जब कर्ण-पिशाचिनी ने देखा तो सामने दुर्गा माँ अपने शेर पर विराजमान थी ।

कर्ण-पिशाचिनी बहुत क्रोधित हुई । स्वयं महाकाल ने मुझे वरदान दिया है कि कोई भी सात्विक देवी मुझे हरा नहीं पायेगी । फिर तुम मेरे काम में दखल देने क्यों आयी हो? यहाँ से चली जाओ, वो बोली ।

हाँ, मुझे ज्ञात है । इसलिए मैं तामसिक रूप में ही तुझसे निबटूंगी ।

यह कहकर दुर्गा माँ महाकाली के रौद्र रूप में आ गयी ।

ये देखकर कर्ण-पिशाचिनी घबरा गयी ।

हे, कर्ण-पिशाचिनी जितनी भी पिशाचिनियाँ पाई जाती हैं वो मेरी ही छाया से बनी हैं ।
उन्हें जो वरदान मिलता है एक तरह से वो मुझे ही मिलता है ।
इसलिए तू मुझे हरा नहीं सकती ।

यह सुनते ही कर्ण-पिशाचिनी भी अपने भयंकर रूप में आ गयी । उसने काली माँ के ऊपर अनेक तरह
के शस्त्रों और विद्याओं से आक्रमण किया । लेकिन काली-माँ ने सबको बे -असर कर दिया और भयंकर
अट्टहास लगाती रही ।

फिर काली माँ ने कर्ण-पिशाचिनी को दण्डित किया । वो पीड़ा से क्रंदन करने लगी और दया की भीख माँगने लगी ।

काली माँ ने कहा कि वो उसे मारेंगी नहीं क्यूँकि वो उनकी छाया से बनी है । लेकिन वो उसकी नीलेश से सम्बंधित
सिद्धता खत्म कर देंगी जिस से नीलेश की सिद्धि खत्म हो जाएगी । ये कहकर उन्होंने उस पर वज्र-प्रहार करके उसकी सिद्धता को नष्ट कर दिया ।

कर्ण-पिशाचिनी काली माँ को प्रणाम करके अपने स्थान को वापस चली गयी ।

काली माँ ने साक्षी के प्राण वापस उसकी बेजान देह में डाल दिए । वो पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गयी ।

सबने अर्जुन को धन्यवाद दिया । लेकिन उसने दुर्गा माँ का धनयवाद करने को कहा ।

इसके बाद कर्ण-पिशाचिनी ने नीलेश को भयंकर रूप से दण्डित किया ।

उसकी सारी धन-दौलत चोरों ने लूट ली । उसका घर भूकंप से गिर गया ।

उसे कुष्ठ रोग हो गया और वो भिखारी बनकर दर-बदर घूमने लगा ।

समाप्त ।

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