Ganesh Ji Ki Kahani: दस रोचक कहानियाँ

श्री गणेश की कहानी/ Ganesh Ji Ki Kahani – Ten stories of Ganesha: भगवान गणेश शिव ओर पार्वती के पुत्र हैं तथा कार्तिकेय के छोटे भाई हैं।

हिन्दू धर्म में उनका अत्यंत महत्व है। हर कार्य में सर्वप्रथम गणेश जी की ही पूजा होती है। क्युँकि उन्हें विघ्नहर्ता माना जाता है। वे हर कार्य से विघ्न – बाधाओं को दूर करके उस सफल बनाते हैं।

गणेश जी की दो पत्नियाँ रिद्धि और सिद्धि हैं। उनके दो पुत्र शुभ और लाभ हैं। तथा संतोषी माता उनकी पुत्री हैं।

आगे गणेश जी की दस रोचक कहानियाँ दी गयी हैं। पढ़िए और आनंद लीजिये।

Ganesh Ji Ki Kahani
Ganesh Ji Ki Kahani

1. गणेश जी के जन्म की कहानी
(Ganesh Ji Ki Kahani)

एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए कैलाश पर एक कंदरा में प्रवेश करती हैं। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उन्हें बहुत पसीना आता है। फिर वे सारे पसीने को इकट्ठा करके, महादेव का ध्यान करते हुए, उससे एक सुन्दर पुत्र का निर्माण करती हैं। वे उसका नाम गणेश रखती हैं।

इसके बाद वे गणेश से कहती हैं कि बेटा गणेश, मैं स्नान करने जा रही हूँ। इसलिए तुम दरवाजे पर खड़े रहकर चौकीदारी करना और किसी को भी अंदर मत आने देना।

यह सुनकर गणेश माता को प्रणाम करकेअपना कर्तव्य निभाने, गुफा के दरवाजे पर खड़ा हो जाता है ओर उसकी रखवाली करने लगता है।

तभी वहाँ पर महादेव आ जाते हैं। तथा वे उस कंदरा में प्रवेश करने लगते हैं। लेकिन गणेश उन्हें अंदर जाने से रोक देता है।

महादेव उस बालक को देखकर हैरान हो जाते हैं और सोचते हैं कि यह कौन है जो मुझे अपनी ही पत्नी से मिलने से रोक रहा है।

क्युँकि माता पार्वती ने अभी-अभी गणेश को बनाया था इसलिए महादेव उसे पहचान नहीं पाए थे। वे फिर से गणेश से कहते हैं कि उन्हें अंदर जाने दें।

Vighnharta Ganesh Ji Ki Kahani

लेकिन माता की आज्ञा से बंधा गणेश कहता है कि मैं किसी भी कीमत पर आपको अंदर नहीं जाने दूँगा। फिर चाहे आपसे युद्ध ही क्यूँ न करना पड़े।

यह सुनकर महादेव क्रोधित हो जाते हैं तथा अपना खडग निकालकर गणेश के सिर को धड़ से अलग कर देते हैं।

तभी माता पार्वती वहाँ पर आ जाती हैं तथा अपने पुत्र का यह हाल देखकर करुण विलाप करने लगती हैं। इसके बाद वे सृष्टि को नष्ट करने के लिए महाकाली का रौद्र रूप धारण कर लेती हैं।

शिव तथा समस्त देवी -देवता उनका यह रूप देखकर घबरा जाते हैं। तभी शिव पार्वती से क्षमा माँगते हैं और कहते हैं कि मैं गणेश को फिर से जीवित कर दूँगा।

इसके बाद शिव जी अपने गणो से कहते हैं कि जाओ एक ऐसी हथिनी के बच्चे का सिर काट कर लाओ जिसने उसे अपनी पीठ के पीछे सुला रखा हो।

तत्पश्चात गण ऐसे हाथी के बच्चे को ढूँढ़ते हैं और उसका सिर काट कर ले आते हैं (इसलिए कहा जाता है कि माँ को अपने बच्चे को अपने सामने सुलाना चाहिए) ।

इसके बाद शिव जी उस सिर को गणेश को लगा देते हैं और उसे फिर से जीवित कर देते हैं। गणेश अब अपने पिता शिव को प्रणाम करता है। फिर समस्त देवी -देवता गणेश को तरह -तरह के वरदान देते हैं।

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2. गणेश जी और महाभारत की कहानी
(Ganesh Ki Kahani)

एक बार महर्षि वेदव्यास कैलाश पर्वत पर आते हैं। वे महादेव से कहते हैं कि वे महाभारत नामक काव्य की रचना करना चाहते हैं। लेकिन उन्हें इसके लिए एक लेखक की जरूरत पड़ेगी।

वे आगे कहते हैं कि आपका पुत्र गणेश अत्यंत बुद्धिमान है। तथा वह इस कार्य के लिए सबसे योग्य है। तथा गणेश को उनके साथ भेज दें। इसके बाद महादेव, गणेश को व्यास जी के साथ जाने की आज्ञा दे देते हैं।

बालक गणेश महर्षि वेदव्यास के साथ उनके आश्रम में चले जाते हैं। वहाँ वेदव्यास गणेश से कहते हैं कि वे महाभारत के श्लोक बोलते जायेंगे ओर तुम उन्हें लिखते जाना। लेकिन बीच में उन्हें रोकना मत अन्यथा उनका तारतम्य टूट सकता है।

गणेश उन्हें ऐसा ही करने का आश्वाशन देता है। इसके बाद व्यास जी श्लोक बोलने लगते हैं ओर गणेश मोरपंख की लेखनी से उन्हें लिखने लगता है।

लेकिन लिखते – लिखते वह मोर – पंख टूट जाता है। मगर अब गणेश व्यास जी को रुकने के लिए नहीं बोल सकता था। क्युँकि उनका तारतम्य टूट सकता था।

Ekdant Ganesh Ji Ki Kahani

साथ ही अगर गणेश उठकर दूसरा पंख लेने जाता तो महर्षि व्यास के कुछ श्लोक उससे छूट सकते थे।

इसलिए गणेश ने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और अपने एक दाँत को तोड़ डाला। फिर वह उस दाँत को लेखनी बनाकर लिखता चला गया।

बाद में जब व्यास को गणेश के बलिदान का पता चला तो वे उससे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उसे एकदन्त का नाम दिया तथा बिघ्नहर्ता होने का वरदान दिया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि अपने कर्तव्य को हर हाल में पूरा करना चाहिए तथा इसके लिए बहाने नहीं बनाने चाहिए।

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3. गणेश जी और परशुराम से युद्ध की कहानी
(Ganesh Ji Ki Kahani)

त्रेता युग में परशुराम नाम के महान ऋषि पैदा हुए थे। वे महर्षि जमदग्नि तथा देवी रेणुका के पुत्र थे। उन्होंने शिव की घोर तपस्या करके परशु नाम का अस्त्र प्राप्त किया था। इसलिए उनका नाम परशुराम पड़ा था।

उन्होंने विष्णु की साधना करके उनसे त्रिलोकविजयी कवच भी प्राप्त किया था।

एक बार सहस्रार्जुन नाम का क्षत्रिय राजा ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आता है। वहाँ वह उनकी कपिला कामधेनु गाय को देखता है जो हर इच्छा को पूरा कर सकती थी। सहस्रार्जुन धोखे से कामधेनु गाय को चुरा कर ले जाता है।

जब परशुराम को इस बात का पता चलता है तो वह जाकर सहस्रार्जुन की सभी हजार भुजाओं को काट देता है। तथा उसे मार कर कामधेनु गाय को वापस ले आता है।

लेकिन सहस्रार्जुन के पुत्र ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आते हैं और समाधी के दौरान उनकी हत्या कर देते हैं। इसके बाद देवी रेणुका भी अपने पति की चिता में जलकर प्राण त्याग देती हैं।

Lambodar Ganesh Ji Ki Kahani

जब परशुराम को इस बात का पता चलता है तो वे सभी क्षत्रिओं को खत्म करने का प्रण लेते हैं। वे 21 बार उन क्षत्रिओं को खत्म करते हैं। लेकिन इसके बाद ऋषि दधीचि उन्हें ऐसा करने से रोक देते हैं।

एक दिन परशुराम अपने आराध्य शिव से मिलने कैलाश पर्वत पर जाते हैं। उस समय शिव तथा पार्वती एक मंत्रणा में व्यस्त थे। तथा उन्होंने अपने गणों से इसमें खलल डालने से मना कर रखा था।

लेकिन जब परशुराम आते हैं तो उनका रौद्र रूप देखकर नंदी, श्रृंगी, यमराज, रूद्र गण , देवता, भूत -प्रेत, पिशाच आदि किसी का भी उन्हें रोकने का साहस नहीं होता।

मगर तभी गणेश परशुराम को आगे बढ़ता देखते हैं। वे उनके रास्ते में आते हैं और कहते हैं कि तुम कहाँ चले जा रहे हो। अभी माता-पिता व्यस्त हैं।

परशुराम कहते हैं कि वे अपने आराध्य शिव से मिलना चाहते हैं और उनका आशीर्वाद लेना चाहते हैं।

लेकिन गणेश कहते हैं कि उन्हें कुछ इंतजार करना होगा। इससे परशुराम क्रोधित हो जाते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने 21 बार सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित किया है। और किसी का भी इतना साहस नहीं है कि उनसे इस तरह से बात कर सकें।

गणेश परशुराम के अहंकार को देखकर क्रोधित हो जाते हैं। फिर वे अपनी सूंड बढ़ाते हैं और परशुराम को उसमें लपेट लेते हैं। इसके बाद वे उसे इधर-उधर पटकने लगते हैं।

इससे परशुराम बहुत ही क्रोधित हो जाते हैं। ओर दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ जाता है।

अंत में परशुराम शिव का दिया हुआ परशु निकालते हैं और गणेश पर वार करते हैं। गणेश पिता के अस्त्र का मान रखने के लिए उस वार को सहन कर लेते हैं। इससे उनका एक दाँत कट जाता है।

तभी शिव – पार्वती वहाँ पर आ जाते हैं। पार्वती परशुराम से बहुत क्रोधित हो जाती हैं तथा उसे उसी समय भस्म करने के लिए तैयार हो जाती हैं।

लेकिन परशुराम उनके चरणों में गिर कर उनसे क्षमा याचना करता है। और कहता है कि उसे पता नहीं था कि गणेश उनके पुत्र हैं।

भगवान विष्णु भी बीच- बचाव करते हैं तथा माता पार्वती को शाँत करते हैं। इसके बाद विष्णु गणेश को एकदन्त के नाम से बुलाते हैं और समस्त देवी -देवता गणेश को अनेकों वरदान देते हैं।

नोट : गणेश जी के एक दाँत के बारे में बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं। वास्तव में उन्होंने बहुत से अवतार लिए थे और हर बार उनेक एकदन्त होने की अलग कथा होती थी।

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4. गणेश जी और कुबेर की कहानी
(Bal Ganesh Ki Kahani)

एक बार धन और दौलत के देवता कुबेर अपने यहाँ एक बहुत बड़े भोज का आयोजन करते हैं। उसमें वे तरह-तरह के व्यंजन बनवाते हैं तथा स्वर्ग के सभी देवी – देवताओं तथा गंधर्वों आदि को आमंत्रित करते हैं।

वे कैलाश वासी शिव – पार्वती तथा गणेश को भी इस भोज में आमंत्रित करते हैं। जब गणेश वहाँ पर भोजन कर रहे था तो कुबेर उनका मजाक उड़ाते हुए कहता है कि गणेश मैंने सुना है कि तुम बहुत भोजन खाते हो। लेकिन कैलाश पर इतना भोजन कहाँ मिलता होगा।

लेकिन मेरे यहाँ इतना भोजन है कि तुम सारी रात भी खाओगे तो खत्म नहीं होगा।

यह सुनकर गणेश कुबेर का घमंड तोड़ने की ठान लेते हैं। इसके बाद वे वहाँ रखा भोजन खाना शुरू करते हैं और कुछ ही पलों में सारा भोजन खत्म कर देते हैं।

लेकिन कुबेर धन का देवता था वह और भोजन बनवा लेता है। लेकिन गणेश उसे भी खत्म कर देते हैं। इस तरह से कुबेर जितना भोजन बनवाता जाता था गणेश उतना ही खत्म करते जा रहे थे।

Baal Ganesh Ji Ki Kahani

अंत में कुबेर के महल में बिल्कुल भी भोजन नहीं बचता है। और अभी किसी भी देवी -देवता ने भोजन नहीं किया था।

इसके बाद गणेश कुबेर से और भोजन लाने को कहता है। और अब कुबेर खुद ही उपहास का पात्र बन चुका था। वह गणेश से कहता है कि सारा भोजन समाप्त हो गया है।

गणेश कहते हैं कि तुम तो कह रहे थे सारी रात खाओगे तो भी भोजन समाप्त नहीं होगा। इसके बाद कुबेर उनसे अपने बर्ताब के लिए क्षमा माँगता है तथा उनका मान रखने की याचना करता है।

जब गणेश देखते हैं कि कुबेर का अहंकार टूट चुका है तो वे उसे क्षमा कर देते हैं तथा फिर से भोजन प्रकट कर देते हैं।

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5. गणेश जी और चंद्र की कहानी


गणेश खाने – पीने के बहुत शौकीन हैं। उन्हें मीठे-मीठे लड्डू तो बहुत ही ज्यादा भाते हैं। ज्यादा भोजन करने के कारण वे स्थूल शरीर के भी हैं।

एक बार गणेश रात्रि का भोजन कर रहे थे। भोजन बहुत स्वादिष्ट था और उन्होंने बहुत ज्यादा खा लिया था। इसके बाद उनका घूमने का मन करता है।

इसलिए वे अपने वाहन मूषक पर बैठकर बाहर घूमने के लिए निकल पड़ते हैं। लेकिन ज्यादा भोजन खाने की वजह से वे बहुत भारी हो गए थे। इस कारण मूषक एक जगह लुढ़क जाता है। और साथ ही गणेश जी भी नीचे गिर पड़ते हैं।

यह सारा दृश्य ऊपर आसमान में बैठा चंद्र देख लेता है। ओर गणेश जी को गिरता हुआ देखकर जोर -जोर से हँसने लगता है। उसकी ऐसी धृष्टता देखकर गणेश जी क्रोधित हो जाते हैं।

और उसे श्राप देते हैं कि आज के दिन (गणेश चौथ) जो भी तेरी तरफ देखेगा उस पर झूठे आरोप लगेंगे और उसके साथ लड़ाई -झगडे ओर क्लेश बढ़ जायेंगे।

Sidhidata Ganesh Ji Ki Kahani

यह सुनकर चंद्र भयभीत हो जाता है ओर हाथ जोड़कर गणेश जी से क्षमा याचना करता है। ओर अपना श्राप वापस लेने के लिए कहता है।

लेकिन गणेश कहते हैं कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन करवाचौथ के दिन सब तेरी पूजा करेंगे। और जो उस दिन मेरी कहानी पढ़ेगा उसकी हर मुराद पूरी होगी।

उस दिन से यही परम्परा चली आ रही है। लोग गणेश चौथ के दिन चंद्र को नहीं देखते हैं। और करवाचौथ पर उसकी पूजा की जाती है।

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6. गणेश जी और दौड़ प्रतियोगिता की कहानी
(Ganesh Ki Kahani in Hindi)

एक बार स्वर्ग के सभी देवी – देवता दौड़ने की प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं। उन्हें ब्रह्मांड के तीन चक्कर लगाने थे। निश्चित समय पर सब देवी – देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर इस रेस के लिए निकल पड़ते हैं। लेकिन गणेश वहीं बैठा रहता है।

उसे देखकर माता पार्वती गणेश से पूछती हैं – बेटा गणेश क्या तुम प्रतियोगिता में भाग नहीं लोगे। यह सुनकर गणेश उठता है और अपने माता-पिता की तीन बार परिक्रमा करता है। और कहता है कि माता-पिता की परिक्रमा करना ब्रह्मांड की परिक्रमा करने से ज्यादा बड़ा है।

Baal Ganesh Ji Ki Kahani

यह सुनकर सारे देवी – देवता गणेश को विजेता घोषित करते हैं। तथा ब्रह्मा, विष्णु और महेश गणेश को वरदान देते हैं कि आगे से जो भी कार्य होगा उसमें सर्वप्रथम तुम्हारी ही पूजा होगी। वरना वह कार्य सफल नहीं होगा।

इसके साथ ही गणेश को सारे विघ्नों को दूर करने का भी वरदान दिता जाता है। इसलिए उनका नाम विघ्नहर्ता गणेश भी पड़ जाता है।

उस दिन के बाद हर हिंदू अपने शुभ कार्य की शुरुआत श्री गणेश की पूजा से ही करता है।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”

अर्थ : घुमावदार सूँड ओर विशाल शरीर वाले श्री गणेश भगवान, मेरे हर कार्य को सदैव विघ्न -बाधाओं से दूर करके सफल करें।

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7. गणेश जी की शादी की कहानी


युवा -अवस्था तक गणेश ने ब्रह्मचर्य का कठोर पालन किया था। उनकी इस लग्न को देखकर तुलसी माता उन पर मोहित हो गई। तथा उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा।

लेकिन गणेश ने कहा कि वे तो ब्रह्मचारी हैं और शादी नहीं करना चाहते। इससे तुलसी देवी नाराज हो गई और उन्होंने गणेश को श्राप दिया कि तुम्हारी दो – दो शादियाँ होंगी।

इसके पश्चात माता पार्वती को गणेश के भविष्य की चिंता होने लगी। उन्होंने गणेश से कहा कि बेटा अब तुम्हें शादी करनी चाहिए। माता की आज्ञा से गणेश शादी के लिए तैयार हो गए।

लेकिन उनके रूप को देखकर कोई भी देवता अपनी पुत्री की शादी उनसे करने के लिए तैयार नहीं हुआ। इससे गणेश बहुत नाराज हो गए। उन्होंने सभी देवी – देवताओं की शादियों में विघ्न डालने शुरू कर दिए।

इससे परेशान होकर देवी – देवता ब्रह्मा के पास गए। तभी ब्रह्मा ने अपनी दो पुत्रियों रिद्धि और सिद्धि को गणेश के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा। लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि जब भी गणेश देवी – देवताओं की शादियों में विघ्न डालें तो तुम उनका ध्यान बंटा देना।

Vinayak Ganesh Ji Ki Kahani

रिद्धि – सिद्धि ने गणेश से शिक्षा लेना शुरू कर दिया। लेकिन जब भी किसी देवता की शादी होती थी तो वे गणेश का ध्यान बातों में लगा देती थी।

लेकिन बाद में गणेश को जब यह पता चला तो वे रिद्धि – सिद्धि से बहुत नाराज हुए। वे उन्हें दंडित करने ही वाले थे। लेकिन तभी ब्रह्मा वहाँ आते हैं और कहते हैं कि गणेश आप रिद्धि – सिद्धि से शादी कर लीजिए।

क्युँकि रिद्धि -सिद्धि गणेश के महान गुणों से प्रभावित होकर उनसे प्रेम करने लगी थीं। तथा यह बात ब्रह्मा जी को पता थी।

रिद्धि – सिद्धि से शादी की बात सुनकर गणेश प्रसन्न हो जाते हैं तथा उनसे शादी कर लेते हैं। वास्तव में रिद्धि धन और समृद्धि की देवी हैं तथा सिद्धि तंत्र तथा आध्यात्मिक शक्तियों की देवी हैं।

आगे चलकर गणेश के शुभ तथा लाभ नाम के दो पुत्र हुए। तथा संतोषी माता नाम की पुत्री भी हुई।

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8. गणेश जी और खीर की कहानी
(Shri Ganesh Ji Ki Kahani)

एक बार गणेश मुट्ठी भर चावल और एक कटोरी दूध लेकर धरती पर घूमने निकले। वहाँ पर उन्होंने बहुत सारे लोगों को खीर बनाने के लिए कहा। लेकिन लोगों को लगा कि वे मजाक कर रहे हैं तथा किसी ने भी उनकी खीर नहीं बनाई।

लेकिन तभी वे एक गरीब बुढ़िया के घर पहुंचे। तथा उससे भी खीर बनाने का आग्रह किया। बुढ़िया इसके लिए मान गई तथा वह एक कढ़ाई में खीर बनाने लगी।

Ganesh Ji Ki Kahani
Bhagwan Ganesh Ji Ki Kahani

लेकिन देखते ही देखते दूध बढ़ने लगा और उसके चावल भी बढ़ने लगे। इसके बाद गणेश जी कहने लगे कि वे नहा कर आ रहे हैं और उसके बाद खीर खाएंगे।

तभी बुढ़िया के पोते – पोती तथा बहू वहाँ पर आई। वे बहुत भूखे थे। तथा बुढ़िया से खीर माँगने लगे। बुढ़िया ने दया करके थोड़ी-थोड़ी खीर उन्हें दे दी। लेकिन खीर कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही थी।

इसके बाद बुढ़िया कहती है कि गणेश जी आइये खीर खा लीजिए। तभी गणेश वहाँ आते हैं और कहते हैं कि उन्होंने तो खीर पहले ही खा ली। जब उनके पोते, पोती तथा बहू ने खीर खाई थी तो उनका भी पेट भर गया।

Sri Ganesh Ji Ki Kahani

यह सुनकर बुढ़िया गणेश की दया से बहुत प्रभावित होती है। इसके बाद बुढ़िया अगले दिन बहुत सारे गरीब लोगों को खीर खिलाती है और वह खीर खत्म ही नहीं होती।

धीरे-धीरे खीर का समाचार राजा तक पहुँच गया। राजा बहुत लालची था। वह सोचता है कि वह बुढ़िया से खीर का बर्तन ले लेगा और हर दिन खूब खीर खाएगा।

इसके बाद उसके सिपाही आकर बुढ़िया से खीर की कढ़ाई ले जाते हैं। लेकिन जब राजा उस खीर को खाने लगता है तो उसे उस कढ़ाई में कीड़े – मकोड़े तथा तिलचट्टे दिखते हैं।

यह देखकर राजा सोचता है कि यह बुढ़िया ऐसी खीर खा रही है, यह तो मेरे किसी काम की नहीं है। इसके बाद वह उस कढ़ाई को वापस बुढ़िया को भिजवा देता है।

लेकिन जब बुढ़िया देखती है तो वह खीर पहले की तरह साफ- स्वच्छ हो गयी थी। जब गणेश जी वहाँ से जाने लगते हैं तो बुढ़िया से कहते हैं कि इस कढ़ाई को घर के एक कोने में दबा दो। बुढ़िया ऐसा ही करती है।

इसके बाद गणेश बाहर आते हैं और बुढ़िया की झोपड़ी को लात मारते हैं। फिर वे वहाँ से चले जाते हैं।

अगले दिन जब बुढ़िया उठती है तो देखती है कि उसकी झोपड़ी शानदार महल बन गई थी। तथा वह कढ़ाई हीरे – जवाहरात से भर गयी थी। बुढ़िया मन ही मन गणेश जी को प्रणाम करती है तथा उन्हें धन्यवाद देती है।

इस कहानी को जो भी पढता – सुनता है उसके भी गरीबी तथा क्लेश खत्म हो जाते हैं । तथा उसके घर में सुख – समृद्धि तथा संपन्नता आ जाती है।

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9. गणेश जी और गजमुखासुर राक्षस की कहानी

त्रेता युग में देवताओं तथा असुरों में भयंकर संग्राम छिड़ा हुआ था। असुरों का राजा गजमुखासुर नाम भयंकर राक्षस था। वह बहुत सारे देवताओं को मार रहा था। तथा ऐसा लग रहा था कि इस युद्ध में असुरों की जीत होगी।

गजमुखासुर से परेशान होकर देवता गणेश जी के पास जाते हैं। तथा उनसे मदद करने का आग्रह करते हैं। गणेश जी इसके लिए तैयार हो जाते हैं तथा युद्ध के लिए निकल पड़ते हैं।

इसके बाद वे गजमुखासुर से युद्ध करते हैं। तभी गजमुखासुर अपनी गदा से गणेश पर प्रहार करता है। इससे उनका एक दाँत टूट जाता है।

Shubhkarta Ganesh Ji Ki Kahani

इससे गणेश जी बेहद क्रोधित हो जाते हैं। वे अपने टूटे हुए दाँत को उठाते हैं और उससे गजमुखासुर पर इतना भयंकर प्रहार करते हैं कि वह डर के मारे एक चूहा बन जाता है।

इसके बाद वह गणेश जी से क्षमा माँगता है तथा उसे वाहन के रूप में स्वीकार करने के लिए कहता है। गणेश जी ऐसा ही करते हैं और उसे अपना वाहन स्वीकार कर लेते हैं।

अपने राजा का यह हाल देखकर सारे असुर भाग कर फिर से पातळ लोक चले जाते हैं। और यह युद्ध समाप्त हो जाता है।

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10. गणेश जी और मूषक की कहानी
(Bhagwan Ganesh Ji Ki Kahani)

एक बार एक जंगल में एक ऋषि अपनी पत्नी के साथ रहते थे। उन ऋषि की पत्नी बहुत ही सुंदर तथा बहुत ही पतिव्रता थी। एक दिन क्रौंच नाम का गंधर्व वहाँ पर आता है।

वह उन ऋषि पत्नी को देखकर उन पर मोहित हो जाता है। जब ऋषि किसी काम से बाहर जाते हैं तो वह गंधर्व उनकी कुटिया में आ जाता है। और ऋषि पत्नी का हाथ पकड़ लेता है। वह उन्हें अपने साथ ले जाने की कोशिश करता है।

ऋषि पत्नी रोने लगती है और उसे छोड़ देने का आग्रह करती है। संयोग से ऋषि वापस वहाँ आ जाते हैं। वे गंधर्व की इस दुष्टता को देखकर बेहद क्रोधित हो जाते हैं।

Shivputr Ganesh Ji Ki Kahani

वे उसे श्राप देते हुए कहते हैं कि तुमने चोरी से मेरी कुटिया में प्रवेश किया है। जाओ तुम अगले जन्म में एक मूषक बन जाओगे तथा चोरी से लोगों के घर में जाकर खाना खाओगे।

यह सुनकर गंधर्व हाथ जोड़कर ऋषि से क्षमा याचना करने लगता है तथा अपने किए पर पश्चाताप करता है।

ऋषि को उस पर दया आ जाती है। वे कहते हैं कि उनका श्राप तो निष्फल नहीं हो सकता लेकिन जब गणेश जी शिव के यहाँ अवतार लेंगे तो वे तुम्हें अपने वाहन के रूप में स्वीकार करेंगे।

इससे तुम्हारे पाप कट जायेंगे और अगले जन्म में तुम फिर से गन्धर्व बन जाओगे। इस तरह से मूषक गणेश जी का वाहन बनता है।

समाप्त।

दोस्तो, ये थीं भगवान श्री गणेश को समर्पित दस रोचक कहानियाँ (Ganesh Ji Ki Kahani)। उम्मीद है आपको पसंद आयी होंगी। इस ब्लॉग पर और भी रोचक किस्से – कहानियाँ हैं आप उन्हें भी जरूर पढ़ें। धन्यवाद।

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