Khatu Shyam Ki Kahani – खाटू श्याम कथा

Khatu Shyam Ki Kahani in Hindi – खाटू श्याम कथा: खाटू श्याम जिन्हें श्याम बाबा या बर्बरीक भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के महान देवता हैं।

इनका मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नामक स्थान पर स्थित है। खाटू श्याम के पिता घटोत्कच (भीम के पुत्र) तथा माता मोरवी (अहिलावती) थीं।

खाटू श्याम को “हारे का सहारा” भी कहा जाता है क्युँकि ये हमेशा हारने वाले का ही साथ देते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु श्याम बाबा के दर्शन करने खाटू श्याम के मंदिर जाते हैं।

आगे खाटू श्याम की पूरी कहानी (Khatu Shyam Ki Kahani) दी गई है। इसके साथ-साथ उनके पिता घटोत्कच तथा माता मोरबी की भी कहानी दी गयी है। बर्बरीक की वीरता की अन्य कहानियाँ भी आप आगे पढ़ सकते हैं।

Khatu Shyam Ki Kahani
Khatu Shyam Ki Kahani

Khatu Shyam Ki Kahani in Hindi (हारे का सहारा खाटू श्याम)

पाँडव पुत्र भीम ने जब असुर कन्या हिडिंबा से शादी की तो उन्हें घटोत्कच नाम का एक पुत्र प्राप्त हुआ। आगे चलकर घटोत्कच ने मोरवी नाम की नाग – कन्या से शादी की थी। तथा उन्हें बर्बरीक नाम का एक पुत्र प्राप्त हुआ।

बर्बरीक एक महान योद्धा थे। बचपन से ही उनकी माता मोरवी ने उन्हें अस्त्र – शस्त्र की शिक्षा दी थी। तथा उनसे कहा था कि हमेशा ही पराजित पक्ष की तरफ से युद्ध करना।

बर्बरीक महादेव के अनन्य भक्त थे। उन्होंने शिव – शंकर की घोर तपस्या करके उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त कर लिए थे। इसलिए उन्हें तीन बाण धारी भी कहा जाता है।

एक बार बर्बरीक को महाभारत के युद्ध की खबर मिली तथा उन्हें पता चला कि इस युद्ध में कौरव तथा पांडव एक दूसरे के साथ लड़ाई करने वाले थे।

बर्बरीक भी यह युद्ध देखना चाहता था। इसलिए वे अपने माता-पिता से कुरुक्षेत्र जाने कीआज्ञा लेते हैं। वह माता को वचन देते हैं कि वे हारने वाले की ओर से ही युद्ध करेंगे।

फिर वे अपना धनुष और तीन बाण लेकर अपने नीले रंग के घोड़े “लीला” पर सवार होकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर आ गए।

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श्री कृष्ण की परीक्षा (Khatu Shyam Ki Kahani)

युद्ध शुरू होने से पहले श्री कृष्ण ने सभी योद्धाओं से एक -एक करके पूछा कि आप लोग इस युद्ध को कितने दिनों में समाप्त कर सकते हैं।

यह सुनकर भीष्म ने कहा कि वे इस युद्ध को 20 दिनों में समाप्त कर देंगे। द्रोणाचार्य ने कहा कि उन्हें 25 दिन लगेंगे। जबकि करण ने कहा कि उन्हें 24 दिन लगेंगे। अर्जुन ने कहा कि उन्हें 28 दिन लगेंगे।

इसके बाद श्री कृष्ण ब्राह्मण का रूप धरकर बर्बरीक के पास भी गए। तथा उनसे पूछा कि तुम इस युद्ध को कितने दिनों में समाप्त कर दोगे। यह सुनकर बर्बरीक ने कहा कि मैं इस युद्ध को 1 मिनट में ही खत्म कर सकता हूँ।

यह सुनकर कृष्ण को हैरानी हुई और उन्होंने बर्बरीक से कहा कि तुम केवल तीन बाणों से इस युद्ध को 1 मिनट में कैसे समाप्त कर सकते हो।

यह सुनकर बर्बरीक ने कहा कि यह तीनों बाण मुझे स्वयं महादेव शंकर से प्राप्त हुए हैं तथा यह अभेध हैं। पहले बाण से मैं उन सभी चीजों को अंकित कर देता हूँ, जिन्हें मैं नष्ट करना चाहता हूँ। दूसरे बाण से मैं उन सभी चीजों को अंकित करता हूँ जिन्हें मैं बचाना चाहता हूँ ।

इसके बाद में तीसरा बाण छोड़ता हूँ जो पहले बाण द्वारा अंकित की हुई सभी चीजों को नष्ट कर देता है। इस तरह से मैं केवल एक ही बाण से चाहूँ तो समस्त ब्रह्मांड को नष्ट कर सकता हूँ।

यह सुनकर श्री कृष्ण चिंतित हो गए। लेकिन उन्होंने बर्बरीक की परीक्षा लेनी चाहिए। उन्होंने एक पीपल की तरफ इशारा किया और कहा कि क्या तुम एक बाण से इस पीपल के सभी पत्तों को भेद सकते हो।

बर्बरीक ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली। तभी कृष्ण ने चुपके से उस पीपल का एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा दिया।

इसके बाद बर्बरीक ने अपना मंत्र पढ़कर पीपल की तरफ अपना बाण चला दिया। एक-एक करके उसे बाण ने पीपल के हर पत्ते को भेद दिया।

लेकिन तभी वह पत्ता आकर श्री कृष्ण के पैर के ऊपर मंडराने लगा। यह देखकर बर्बरीक ने कहा कि शायद एक पत्ता आपके पैर के नीचे आ गया है इसलिए आप अपना पैर हटा लीजिए ताकि यह बाण उसे भी भेद सके।

यह सुनकर कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया और उस बाण ने उसे पत्ते को भी छेद दिया। यह सब देखकर कृष्ण ने अनुमान लगाया कि यह तीनों ही बाण इतने घातक हैं कि सच में ही बर्बरीक इस समस्त ब्रह्मांड को 1 मिनट में समाप्त कर सकता है। और उन्हें इस ब्रह्मांड की सुरक्षा की चिंता होने लगी।

इसके बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि इस युद्ध में तुम किसका साथ दोगे। यह सुनकर बर्बरीक ने कहा कि मैंने अपनी माता को वचन दिया है कि इस युद्ध में मैं उसी का साथ दूँगा जो हार रहा होगा।

यह सुनकर श्री कृष्ण ने अनुमान लगा कि इस वचन का मतलब सर्वनाश है।

अभी पांडवों के पास केवल सात अक्षौहिणी सेना है जबकि कौरवों के साथ 11 अक्षौहिणी सेना है। इसका मतलब है कि पांडव अभी कमजोर हैं इसलिए सबसे पहले बर्बरीक पांडवों का साथ देगा। और एक बाण से कौरवों को समाप्त कर देगा।

लेकिन अब कौरवों की हार होगी तो वह उनकी तरफ से लड़ेगा और एक बाण से मेरे सहित सभी पांडवों को समाप्त कर देगा।

अर्थात बर्बरीक के अलावा कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा। इसके बाद श्री कृष्ण वापस अपने शिविर में आ जाते हैं। तथा ब्रह्मांड को बचाने के लिए एक युक्ति पर विचार करते हैं।

शीश का बलिदान (Khatu Shyam Ki Kahani)

अगले दिन वे एक ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक के शिविर में जाते हैं। और उससे कहते हैं कि युद्ध से पहले रणभूमि को सबसे महान क्षत्रिय का सिर बलिदान करना होगा। और तुम सबसे महान क्षत्रिय हो, क्या तुम अपने शीश का बलिदान दे सकते हो।

यह सुनकर बर्बरीक हाँ कह देता है। फिर सारी रात वह महादेव की पूजा अर्चना करता है। तथा अगले दिन अपना सिर काटकर श्री कृष्ण को दे देते हैं। उस दिन फागुन महीने के शुक्ल पक्ष का 12 दिन था।

वास्तव में बर्बरीक पिछले जन्म में एक यक्ष था। तथा उसे अपनी शक्ति पर बहुत अभिमान हो गया था। एक बार सब देवता ब्रह्मा के पास आते हैं और कहते हैं कि पृथ्वी पर बहुत पाप बढ़ गया है। तथा आप इसके नाश का उपाय बतायें।

यह सुनकर ब्रह्मा ने विष्णु भगवान से कहा कि आप पृथ्वी पर अवतार लेकर धर्म का नाश करें। यह सुनकर बर्बरीक (जो यक्ष थे) ने कहा कि इसके लिए विष्णु को धरती पर अवतार लेने की जरूरत नहीं है, मैं अकेले ही सब दुष्टों को खत्म कर सकता हूँ।

भगवान विष्णु का ऐसा अपमान सुनकर ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए। तथा उन्होंने यक्ष से कहा कि घमंड करना भी पाप का ही एक रूप है।

तथा उस श्राप दे दिया कि जब द्वापर युग में श्री कृष्णा धरती पर सभी बुराइयों का नाश कर रहे होंगे तो सबसे पहले वे तुम्हें ही मारेंगे। और इसी श्राप के कारण बर्बरीक का सिर श्री कृष्ण ने दान के रूप में ले लिया था।

लेकिन अपने सिर का बलिदान करने से पहले बर्बरीक ने श्री कृष्ण से आग्रह किया कि वह इस युद्ध को देखना चाहते हैं। इसलिए श्री कृष्ण ने उनके सिर को एक पहाड़ी की चोटी पर स्थापित कर दिया तथा उन्हें दिव्य दृष्टि दे दी ताकि वे रणभूमि का सारा युद्ध देख सकें।

युद्ध की समाप्ति पर पांडव विजयी हो गए थे। लेकिन अब वे बहस करने लगते हैं कि इस युद्ध की विजय का श्रेय आखिर किसको जाता है।

यह सुनकर कृष्ण कहते हैं कि बर्बरीक ने सारा युद्ध देखा है तथा वही बता सकता है कि इस युद्ध की जीत का श्रेय किसको जाता है। यह सुनकर सब लोग बर्बरीक के मस्तक के पास जाते हैं तथा उससे पूछते हैं।

बर्बरीक उत्तर देता है कि पूरे युद्ध भूमि में केवल भगवान श्री कृष्ण का चक्र ही चल रहा था। तथा उन्होंने ही इस युद्ध को जीता है।

श्याम नाम का वरदान (Khatu Shyam Ki Kahani)

यह सुनकर श्री कृष्ण बर्बरीक से बहुत प्रसन्न हुए क्युँकि उससे सिर का बलिदान लेने के बाबजूद वह ईमानदारी से केवल उन्ही का गुणगान कर रहा था।

इसलिए वे उसे वरदान देते हैं कि आज से तुम सभी लोगों के द्वारा मेरे नाम से अर्थात श्याम के नाम से पूजे जाओगे। तथा मेरी समस्त शक्तियाँ तुम्हें भी प्राप्त होंगी।

और क्योंकि तुम हारने वाले पक्ष का साथ देते हो इसलिए लोग तुम्हें “हारे का सहारा” भी बुलाएंगे। जो भी व्यक्ति जीवन में हारा हुआ महसूस करेगा वह तुम्हारे दर्शन मात्र से जीत प्राप्त कर लेगा।

यह वरदान देकर भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक के सिर तथा धड़ को खाटू (जिला सीकर, राजस्थान) नाम की जगह पर ले जाते हैं तथा वहाँ उनकी माता मोरवी के साथ मिलकर उनकी अंत्येष्टि कर देते हैं।

अब इस खाटू नामक जगह पर “खाटू श्याम” का भव्य मंदिर बनाया गया है तथा हर वर्ष लाखों लोग यहाँ श्याम बाबा के दर्शन करने आते हैं ।

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खाटू श्याम (बर्बरीक) की माता मोरवी की कहानी

एक बार की बात है, भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपनी समाधि में लीन थे। तभी मोरवी (अहिलावती) नाम की एक शिव भक्त उन्हें फूल चढ़ाने आती है। वह उनके चरणों में कुछ फूल चढाती है।

लेकिन तभी देवी पार्वती देखती हैं कि उस कन्या ने महादेव को पुराने मुरझाये हुए फूल चढ़ा दिए थे। वे इससे क्रोधित हो जाती हैं। तथा मोरवी को श्राप देती हैं कि तुम एक राक्षस कुल में पैदा होंगी। यह सुनकर मोरबी रोने लगती है।

यह देखकर महादेव के गले में विराजमान “वासुकि नाग” को मोरवी पर दया आती है। वे माता पार्वती से कहते हैं कि महादेव तो समाधि में लीन हैं उन्हें इन फूलों से क्या फर्क पड़ता है।

यह सुनकर पार्वती वासुकि से भी क्रोधित हो जाती है। तथा कहती है कि तुम महादेव की सेवा करने लायक नहीं हो, अगले जन्म में तुम एक असुर की सेवा करोगे जो नरक का स्वामी नरकासुर होगा। और क्युँकि तुम इस कन्या का पक्ष ले रहे हो, यह तुम्हारी बेटी के रूप में पैदा होगी।

यह सुनकर मोरवी तथा वासुकि माता पार्वती से क्षमा – याचना करते हैं तथा इस श्राप से मुक्ति का मार्ग पूछते हैं। माता पार्वती कहती हैं कि घबराओ मत भगवान श्री कृष्ण तुम्हें इस श्राप से मुक्ति दिला देंगे।

इसके बाद द्वापर युग में वासुकि नाग “मुरा” नाम से एक राक्षस के यहाँ पैदा होते हैं। तथा बड़े होकर नरक के राजा “नरकासुर” के सेनापति बनते हैं। वासुकि के यहाँ मोरबी भी उनकी कन्या के रूप में पैदा होती है।

धीरे-धीरे नरकासुर सारे ब्रह्मांड में अपना आतंक मचाने लगता है। तथा देव – दनुज, नर – नारी, देवताओं आदि को प्रताड़ित करने लगता है। (Khatu Shyam Ki Kahani)

एक दिन सारे देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास जाते हैं तथा उनकी रक्षा का करने के लिए कहते हैं। तभी भगवान विष्णु अपने कृष्ण रूप से अनुरोध करते हैं कि वे समस्त सृष्टि को नरकासुर से मुक्त करवा दें।

इसके बाद श्री कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ अपनी सेना को लेकर नरकासुर पर चढ़ाई कर देते हैं। तथा इस युद्ध में नरकासुर को मार देते हैं। मुरा भी श्री कृष्ण को रोकने की कोशिश करता है लेकिन वह उसे भी मार देते हैं।

मोरवी सत्यभामा से लड़ती है लेकिन वह पराजित हो जाती है। इसके बाद श्री कृष्णा उसे पूर्व जन्म की बातें याद दिलाते हैं। इससे मोरवी उनके सामने स्पर्पण कर देती है।

श्री कृष्ण कहते हैं कि मुरा फिर से भगवान शिव जी के गले में विराजमान हो गए हैं। तथा तुम एक महान देवता की माता बनोगी। यह वरदान देकर श्री कृष्ण वहाँ से चले जाते हैं।

इसके बाद मोरवी एक पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगती है। एक दिन भीम के पुत्र घटोत्कच वहाँ आते हैं। मोरवी को देखकर वे उसकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं तथा उससे शादी का प्रस्ताव रखते हैं।

मोरवी को जब पता चलता है कि वे महान पांडव वंश से संबंध रखते हैं तो वह उनसे शादी कर लेती है। समय के साथ उन दोनों के यहाँ बर्बरीक नाम का बालक पैदा होता है।

मोरवी बचपन से ही बर्बरीक को अस्त्र – शस्त्र की शिक्षा देने लगती है। तथा वे शीघ्र ही महा – पराक्रमी योद्धा बन जाते हैं। Shree Khatu Shyam Ki Kahani.

एक दिन मोरवी अपने पुत्र से कहती हैं कि तुम्हें पूरे समस्त ब्रह्मांड में अजेय बनने के लिए देवी कामाख्या की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद बर्बरीक देवी कामाख्या की पूजा करने कामरूप पर्वत पर चले जाते हैं।

कई सालों की घोर तपस्या करने के बाद देवी कामाख्या उन से प्रसन्न होती हैं। वे बर्बरीक को तीन बाण देती हैं। और कहती हैं कि इन बाणों को तुम जो भी आदेश दोगे, वे उसे हर हालत में पूरा करेंगे। इस तरह तुम इस समस्त ब्रह्मांड में अजेय योद्धा बन गए हो।

इसके बाद बर्बरीक वापस माता – पिता के पास लौट जाते हैं तथा उन्हें माता कामाख्या के दिए वरदान के बारे में बताते हैं। यह सुनकर माता मोरवी तथा पिता घटोत्कच बहुत खुश होते हैं। तथा अपने बेटे को एक परम योद्धा बनने का आशीर्वाद देते हैं।

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खाटू श्याम (बर्बरीक) के पिता घटोत्कच की कहानी

धृतराष्ट्र का बेटा दुर्योधन पाँडवों से बहुत ईर्ष्या करता था तथा इंद्रप्रस्थ का राजा बनना चाहता था। इसलिए वह पाँडवों को मारने के लिए एक साजिश रचता है।

वह पुरोचन नामक मंत्री को लाख का महल अर्थात लाक्षागृह बनाने को कहता है। वास्तव में दुर्योधन लाक्षागृह में आग लगाकर पाँडवों को मार देना चाहता था।

इसके बाद वह पाँडवों को लाक्षागृह में भोज पर बुलाता है। वहाँ पर उनका काफी आदर सत्कार किया जाता है। लेकिन विदुर उन्हें दुर्योधन की चाल के बारे में बता देते हैं।

युधिष्ठर अपने भाइयों से कहते हैं कि एक सुरंग बनवाओ। जब दुर्योधन लाक्षागृह में आग लगवा देता है, तो पाँडव सुरंग के रास्ते एक जंगल में पहुँच जाते है।

पीछे एक भीलनी और उसके पाँच बेटे जल कर मर जाते हैं। उन्हें ही कुंती तथा पाँडव समझ लिया जाता हैं। इसके बाद दुर्योधन राजा बन जाता है।

जब पाँडव सुरंग से निकलते है तो एक जंगल में आ जाते हैं। वहाँ पर हडिम्ब नाम का एक दानव उन्हें देख लेता है। वह अपनी बेटी हडिम्बा से कहता है कि उन पांडवों को मेरे पास लाओ ताकि मैं उन्हें खाकर अपनी भूख मिटा सकूँ। Baba Khatu Shyam Ki Kahani.

हिडिंबा रूप बदलकर एक सुंदर युवती बन जाती है। फिर वह पांडवों के पास जाती है। लेकिन वहाँ पर भीम को देखते ही वह उस पर मंत्र – मुग्ध हो जाती है। और उसे शादी का प्रस्ताव देती है।

इसके बाद वह पांडवों को अपने पिता हडिम्ब के बारे में बता देती है। तभी हडिम्ब वहाँ पर पहुँच जाता है तथा पांडवों को खाने के लिए आता है।

लेकिन भीम उससे युद्ध करता है तथा उसे मार देता है। इसके बाद हिडिंबा, माता कुंती से भीम के साथ उसकी शादी करवाने के लिए कहती है।

कुंती और बाकी पांडव इसके लिए राजी हो जाते हैं तथा भीम की शादी हिडिंबा से कर दी जाती है। कुछ समय के पश्चात भीम तथा हिडिंबा के यहाँ घटोत्कच नाम का एक बेटा पैदा होता है।

इसके बाद भीम अपने भाइयों के साथ आगे की यात्रा पर निकल जाते हैं जबकि हिडिंबा तथा घटोत्कच वहीं अपने घर में रहने लगते हैं। समय साथ घटोत्कच बड़ा हो जाता है तथा एक वीर योद्धा बन जाता है।

वह महादेव की कठोर तपस्या करके बहुत सी शक्तियाँ प्राप्त करता हैं। एक दिन घटोत्कच की माता हिडिंबा, काली माँ की पूजा कर रही थी। वह अपने बेटे से कहती हैं कि एक मानव बच्चे को बलि के लिए लाओ।

माता की आज्ञा पाकर घटोत्कच वहाँ से चला जाता है। वह एक जंगल में पहुँचता है तथा एक औरत से कहता है कि अपने एक बेटे को उस दे दे अन्यथा वह सबको मार देगा।

लेकिन संयोग से भीम वहाँ आ जाता हैं और यह सब देख लेता है। उस ज्ञात नहीं था कि घटोत्कच उसी का बेटा है। वह घटोत्कच से कहता है कि उस बच्चे के बदले उसे ले चलो।

घटोत्कच इसके लिए मान जाता है तथा भीम को लेकर हिडिंबा के पास चला जाता है। हिडिंबा भीम को देख कर खुश हो जाती है। वह घटोत्कच को बताती है कि ये तुम्हारे पिता हैं।

इसके बाद भीम उन्हें समझाता है कि नर बलि देना उचित नहीं है तथा इससे देवता प्रसन्न नहीं होते हैं।

भीम उनके साथ कुछ समय बिताते है और एक दिन घटोत्कच को आशीर्वाद देकर फिर से अपने भाइयों के पास चले जाते हैं जो अज्ञातवास में थे। Khatu Shyam Ki Kahani – Ghatotkach Putr.

इसके बाद महाभारत का युद्ध शुरू होता है। कौरवों की सेना पाँडवों पर भारी पड़ रही थी। साथ ही कारण ने एंड की तपस्या करके उनसे वास्वि अस्त्र ले लिया था। अर्जुन के पास यही एक अस्त्र नहीं था। इसलिए उसकी हार निश्चित थी। इसलिए श्री कृष्ण चाहते थे कि कर्ण को इस अस्त्र को किसी दूसरे पर चलाने के लिए मजबूर करना होगा।

संयोग से अगले दिन दुर्योधन ने अलामभूष तथा अल्ल्युद्ध आदि दैत्यों को बुला लिया था। यह देखकर श्री कृष्ण कहते हैं कि भीम के पुत्र घटोत्कच ही उन दैत्यों का सामना कर सकते हैं।

यह सुनकर भीम अपने पुत्र घटोत्कच को रण में आने के लिए कहता है। अब तक घटोत्कच ने मोरवी से शादी कर ली थी। तथा उसके तीन बेटे – अंजनपर्वम, बर्बरीक (खाटू श्याम) तथा मेघवर्ण भी हो चुके थे।

घटोत्कच अपने पिता के कहने पर इस युद्ध के लिए आ जाता है। वास्तव में श्री कृष्ण चाहते थे कि कर्ण अपनी वास्वि शक्ति का प्रयोग घटोत्कच पर करे।

घटोत्कच ने आते ही युद्ध के मैदान में भयंकर तबाही मचा दी। युद्ध के आठवें दिन घटोत्कच अलामभूष से लड़ता है। उन दोनों की लड़ाई बहुत लंबी चलती है। हालांकि घटोत्कच उसे जख्मी कर देता है लेकिन फिर भी वह अभी हारा नहीं था।

इसके पश्चात घटोत्कच आगे आने वाले कई दिनों तक बहुत सारे दैत्यों को मारता है। लेकिन 14 वें दिन उसका पुत्र अंजनपर्व, अश्वत्थामा के हाथों वीरगति को प्राप्त हो जाता है।

इससे घटोत्कच अत्यंत क्रोधित हो जाता है। तथा कौरवों की सेना पर कहर बरसाने लगता है। वह अपनी सम्मोहन विद्या से सारी सेना में कोहराम मचा देता है।

अश्वतथामा उससे लड़ने आता है और दोनों में भीषण लड़ाई होती है। दोनों अपनी मायावी विद्या का भी प्रयोग करते हैं। अश्वतथामा किसी तरह घटोत्कच को पीछे हटा देता है।

लेकिन यह सब देखकर द्रोणाचार्य, दुर्योधन और दुशासन को घटोत्कच की वजह से चिंता हो जाती है।

Khatu Shyam Ki Kahani (Son of Ghatotkach)

अगले दिन घटोत्कच फिर से युद्ध में उतरता है तथा अपनी गदा से अलामभूष तथा अल्ल्युद्ध दोनों को मार देता है। साथ ही वह बहुत सी कौरव सेना को भी मार देता हैं।

इसके बाद दुर्योधन कर्ण को घटोत्कच से युद्ध करने के लिए भेजता है। दोनों में भीषण युद्ध होता है। कोई रास्ता न देखकर आखिर कर्ण घटोत्कच पर अपनी वास्वि – शक्ति का प्रयोग कर देता है। इस अस्त्र से घटोत्कच की मृत्यु हो जाती है।

लेकिन मरने से पहले वह अपने शरीर को बहुत ही बड़ा कर लेता है और कौरवों के ऊपर गिरा देता है। इससे कौरवों की लगभग एक अक्षौहिणी सेना उसके शव के नीचे दबकर मर जाती है।

घटोत्कच की मृत्यु से सभी पाँडव दुख से भर जाते हैं। लेकिन श्री कृष्ण सोचते हैं कि घटोत्कच ने अपना बलिदान देकर अर्जुन को कर्ण से बचा लिया है। तथा अब पाँडवों की जीत निश्चित थी।

इस प्रकार बर्बरीक (खाटू श्याम) के पिता महान घटोत्कच ने महाभारत में अपना महतवपूर्ण योगदान दिया था।

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बर्बरीक के बचपन की कहानी
(Khatu Shyam Story in Hindi)

एक बार चंद्रक वन में कुछ साधु रहा करते थे। उनके गुरु का नाम जलोद ऋषि था। वे साधु प्रतिदिन देवताओं के लिए हवन यज्ञ आदि किया करते थे।

एक बार की बात है वहाँ पर बृषभासुर नाम का एक राक्षस आ जाता है। वह उन साधुओं को यज्ञ करते हुए देखता है तो बहुत क्रोधित होता है। वह उनसे कहता है कि तुम देवताओं का यज्ञ बंद कर दो। और इसके बदले मेरा यज्ञ शुरू करो। मैं बृषभासुर हूँ और मेरे से बलशाली कोई भी देवता नहीं है। मैंने बहुत से देवताओं को हराया है।

परंतु वे साधू ऐसा करने से मना कर देते हैं। तभी बृषभासुर अपनी माया से एक भीमकाय बैल में बदल जाता है जो हाथी के आकार का था।

फिर वह दौड़ता हुआ उन साधुओं की तरफ आता है और उनके हवन – यज्ञ आदि को कुचल देता है। वह उनकी सारी कुटियाओं को भी नष्ट कर देता है। इस भगदड़ में कुछ साधू जख्मी भी हो जाते हैं।

इसके बाद बृषभासुर फिर से दानव बन जाता है और उनसे कहता है कि यदि तुमने कल से मेरा यज्ञ शुरू नहीं किया तो मैं तुम्हें अपने सींगो से स्वर्ग लोक पहुँचा दूँगा। यह कहकर वह वहाँ से चला जाता है।

इसके बाद सब साधु अपने गुरु ऋषि जलोद के पास जाते हैं जो एक बन में तपस्या कर रहे थे। तथा उन्हें सारा वृतांत सुनाते हैं। ऋषि कुछ विचार करते हैं और कहते हैं कि चिंता मत करो। मैं पास के ही पर्वत शिखर पर रहने वाली माता मोरवी से मदद लेने जाता हूँ। (Childhood: Khatu Shyam Ki Kahani).

यह कहकर ऋषि जलोद, साथ के ही मृगराज पर्वत पर जाते हैं जहाँ पर माता मोरवी तथा घटोत्कच अपने बेटे बर्बरीक के साथ रहते थे। वे उन्हें बृषभासुर के अत्याचार के बारे में बताते हैं।

तभी माता मोरवी अपनी पुत्र बर्बरीक को बुलाती हैं जो अभी 15 बरस के ही थे।

माता मोरवी कहती है कि पुत्र इन ऋषि के साथ जाओ और उनकी समस्या का निवारण करो। यह सुनकर बर्बरीकअपने अस्त्र -शस्त्र उठाते हैं और अपनी माता मोरवी तथा पिता घटोत्कच को प्रणाम करके ऋषि जलोद के साथ चले जाते हैं।

अगले दिन बृषभासुर फिर से वहाँ पर आता है। और साधुओं से कहता है कि तुमने फिर से यज्ञ शुरू कर दिया है। इसके बाद वह फिर से भीमकाय बैल में बदल जाता है। और उनकी तरफ दौड़कर आता है।

लेकिन तभी बर्बरीक उठते हैं और उस बैल के रास्ते में खड़े हो जाते हैं। लेकिन बृषभासुर नहीं रुकता और उनकी तरफ बढ़ने लगता है। जैसे ही वह बर्बरीक के पास पहुँचता है, बर्बरीक उसके दोनों सींगों को पकड़ लेते हैं। फिर उसे सात बार घुमाकर जोर से एक तरफ पटक देते हैं।

तभी बृषभासुर अपना बैल रूप बदलकर फिर से दानव बन जाता है। उसके घुटने में काफी चोट लगी थी। लेकिन अब वह बहुत ही क्रोधित हो चुका था। वह उन साधुओं से कहता है कि तुम इस मायावी बालक को पकड़ कर लाये हो, लेकिन मैं अभी इसका अंत कर देता हूँ।

इसके बाद बृषभासुर एक तलवार लेकर बर्बरीक से लड़ने लगता है। लेकिन बर्बरीक अपनी तलवार से उसकी तलवार के टुकड़े-टुकड़े कर देता है। Veer Yodha : Khatu Shyam Ki Kahani

इसके बाद बृषभासुर अपनी गदा निकालता है और बर्बरीक से लड़ने लगता है। लेकिन बर्बरीक एक ही घूँसे से उसकी गदा का चूर्ण बना देता है। यह देखकर बृषभासुर हैरान हो जाता है।

तभी बर्बरीक उसकी छाती पर एक जोर से घूँसा मारते हैं जिससे वह दूर जा कर गिरता है। अब बृषभासुर, बर्बरीक से बहुत डर जाता है तथा बैल बनकर तीव्र गति से जंगल की तरफ भाग जाता है।

Khatu Shyam Ki Kahani

लेकिन बर्बरीक अपना धनुष उठाते हैं तथा स्वयंभेदी बाण को आदेश देते हैं कि बृषभासुर जहाँ भी है उसके सिर को धड़ से अलग कर दो। यह कहकर वह तीर चला देते हैं। थोड़ी ही देर में तीर बृषभासुर को ढूँढ लेता है तथा उसके सर को धड़ से अलग कर देता है।

इसके बाद जलोद ऋषि तथा सभी साधु, वीर योद्धा बर्बरीक की जय – जयकार करते लगते हैं तथा उनकी सहायता के लिए उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद देते हैं। बर्बरीक भी उन साधुओं को नमस्कार करके वापस अपने माता-पिता के पास चले जाते हैं।

समाप्त।

दोस्तो, उम्मीद है आपको खाटू श्याम की कहानी (Khatu Shyam Ki Kahani in Hindi) तथा उनके माता -पिता की कहानी पढ़कर अच्छा लगा होगा तथा आपका मन श्रद्धा भाव से भर गया होगा। धन्यवाद।

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